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Tuesday 21 June 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~17
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ①④_तर्जुमह*
और जब मिले मुसलमानो को, बोले "हम ईमान ला चुके" और जब अकेले हुए अपने शैतानो के पास, कहने लगे के "बेशक हम तुम्हारे साथ है। बीएस हम तो हँसी-मज़ाक करनेवाले है"

*तफ़सीर*
और जब मुनाफिकिन मिले मुसलमानो को और कहने लगे के भाई ! आप तो सिद्दीक़ है, पैग़म्बरे इस्लाम के यार गार, बड़ी शानवाले है। क्या कहना है उमर का, फारूक है, कुफ़्र व कुफ्फारसे बेज़ार है। अल्लाह अल्लाह अली, शेरे खुदा है, हैदर कर्रार है। और अलीए मुर्तज़ा के कहने पर, के तुम भी वाकई मुसलमान हो जाओ बोले हम तो सच्चाई क्र साथ ईमान ला चुके। हमारे और आपके इमानमे कोई फर्क नही और जब वही मुनाफिकिन अकेले हुवे और तन्हाई में अपने शैतानो शरीर सरदारो के पास पहोंचे, तो कहने लगे के हमारी उन बातो से तुम असर न लो तुम खूब जानते हो के बेशक हम तुम्हारे ही साथ है और हमेशा के साथी है। तुमको हमारी मज़ाक की आदत मालूम है। मुसलमानो में जो बाते हुई उसमे बीएस हम तो उनसे अपनी आदतके मुवाफ़िक हँसी मज़ाक करनेवाले है। और जो कुछ् कहा मज़ाक में कहा। ये लोग समजते है के हसि मज़ाक करके मुसलमानो को ज़लील कर रहे है।
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