🔹याद रहे कि *बुग्ज़ व किना* आज कल की पैदावार नहीं बल्कि बहुत पुरानी बिमारी है, हम से पहली उम्मते भी इसका शिकार होती रही है।
🔹नबी ﷺ का फरमान है :
अन क़रीब मेरी उम्मत को पिछली उम्मतों की बिमारी लाहिक होगी।
🔹सहाबए किराम ने अर्ज़ की: पिछली उम्मतों की बिमारी क्या है ?
🔹आप ﷺ ने फ़रमाया :
तकब्बुर करना, इतराना, एक दूसरे की ग़ीबत करना और दुन्या में एक दूसरे पर सबक़त की कोशिश करना नीज़ आपस में बुग्ज़ रखना, बुख्ल करना, यहाँ तक की वो ज़ुल्म में तब्दील हो जाए और फिर फितना व फसाद बन जाए
*किने के नुक्सानात*
🔹दिल ही दिल में पलने वाला *किना* दुन्या व आख़िरत में कैसे कैसे नुक्सानात का सबब बनता है ! इसकी चन्द झलकिया इन्शा अल्लाह अगली पोस्टो में मुलाहिज़ा कीजियेगा...
*✍🏽बुग्ज़ व किना* स.7
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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