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Wednesday 22 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रत अली शेरे खुदा رضي الله تعالي عنه तलवार चलाते और दुश्मनो की सफों को डरहम बरहम करते चले जाते थे मगर वो हर तरफ मुद मुद कर रसूलल्लाह को देखते थे मगर जमाले नुबुव्वत नज़र न आने से वो इन्तिहाई इज़्तिराब व बे क़रारी के आलम में थे।

हज़रते अनस के चचा हज़रते अनस बिन नज़र رضي الله تعالي عنه लड़ते लड़ते मैदाने जंग से भी कुछ आगे निकल पड़े वहा जा कर देखा कि कुछ मुसलमानो ने मायूस हो कर हथियार फेक दिए है। आप ने पूछा कि तुम लोग यहा बेठे क्या कर रहे हो ? लोगो ने जवाब दिया कि अब हम लड़ कर क्या करेंगे ? जिन के लिये लड़ते थे वो शहीद हो गये। आप ने फ़रमाया कि अगर वाक़ई रसूले खुदा शहीद हो चुके तो फिर हम उनके बाद ज़िंदा रह कर क्या करेंगे ? चलो हम भी इस नदान में शहीद हो कर हुज़ूर ﷺ के पास पहुच जाए।

ये कह कर आप दुश्मनो के लश्कर में लड़ते हुए घुस गए और आखरी दम तक इन्तिहाई जोशे जिहाद और जाबाज़ी के साथ जंग करते रहे यहाँ तक कि शहीद हो गए।
लड़ाई खत्म होने के बाद जब इनकी लाश देखी गई तो 80 से ज़्यादा तीर व तलवार और नेज़ो के ज़ख्म इनके बदन पर थे काफिरो ने इनके बदन को छलनी बना दिया था और नाक, कान वगैरा काट कर इनकी सूरत बिगाड़ दी थी, कोई शख्स इनकी लाश को पहचान न सका सिर्फ इनकी बहन ने इन की उंगलियो को देख कर इनको पहचाना।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 267*
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