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Thursday 9 June 2016

तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~08

*सूरए बक़रह_पारह-01*

*आयत ①, तर्जुमह*
अलिफ़-लाम-मीम
*फफ्सिर*
हुरूफ़े मुकत्तआत जिसका मतलब सिर्फ अल्लाह जनता है और अल्लाह की अता से उसका रसूल

*आयत ②, तर्जुमह*
वो किताब के किसी किस्म का शक नहीं जिसमे. हिदायत हे डरजाने वालोंके लिये।
*तफ़सीर*
और रसूले करीम से जो वादा फ़रमाया गया था, के तुम्हे एक अनमिट किताब दूंगा और बनी इसराइल (हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की औलाद) से भी ये वादा हो चूका था, जिसके वो इंतज़ार करने वाले थे और मदीने में बहुत आबाद थे, बस वो शानदार किताब यही क़ुरआने करीम है।
और यही एक ऐसी किताब है के कलामे इलाही होने में, फेरफार से पाक होने में, तब्दील से पाक होने में, मोजिज़ा की हद तक पहोचने में, मोजिज़ा होने में किसी किस्म का शक नहीं।
शक का कोई प्रकार इसमें नहीं पाया जाता। जो इसमें किसी किस्म का शक रखता है, तो ये शक रखने वालेका जुर्म है। यही किताब है जिसमे शक की कोई गुंजाइश नही निकल सकती।
फरमाने हिदायत है। बल्कि खुद हिदायत है अल्लाह से डरजाने वालो के लिये।
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