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Friday 15 July 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-39
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ③⑦_तर्जुमह*
पस पा लिया आदमने अपने परवरदिगार से खास कलमे। तो दरगुज़र फरमा दिया उन्हें। बेशक वही दरगुज़र फर्मानेवाला, बख्शनेवाला है।

*तफ़सीर*
     हज़रते आदम तो ज़मीन पर पहले वहा उतरे, जिसको लोग "शरंदिप टापू" या "लंका" कहते है और बीबी हव्वा वहा उतरी, जिसको "जिद्दा" कहा जाता है। और फरिश्तों की जुदाई में हज़रते आदम इतना रोये, इतना रोये के दुन्या में सबसे ज़्यादा रोनेवाले हज़रते याक़ूब और सारे दुन्या भर के रोनेवालो के टोटल से ज़्यादा रोये, जिस पर सदिया गुज़र गई। 300 बरस तक आसमान की तरफ आँख न उठाई। उनके क़दम से ज़मीन की बहार बढ़ गई और जमनी के फूल महके। मगर आप का जी न बहला।
     ये अदा बंदगी की ऐसी पसंदीदा हुई के उनकी मक़बूलियत ज़ाहिर करदी गई। पस अच्छी तरह से सिख लिया और याद कर लिया अपने परवरदिगार से चन्द कलमे और कहने लगे के,
_रब्बना ज़लमना अन्फोसना व इल्लम तग्फिरलना व तरहमना लनकुनन्न मीनल खासिरिन_
_असअलुक बे हक़्के मोहम्मदीन अन तगफिरलि अल्लाहुम्म इन्नी असअलुक बे जाहे मोहम्मदीन अब्देका व करामते ही अलयक अन तगफिरलि खती अति_
"अय हमारे परवरदिगार ! हमने अपना बिगाड़ डाला और अगर तूने न बख्शा हमको, और रहम न फ़रमाया हम पर, तो हम होंगे घाटवालो में से"
"में मोहम्मद के वसिलेसे तुजसे सवाल करता हु के मुझे बख्श दे !"
"अय अल्लाह ! में तुजसे सवाल करता हु तेरे बन्दे मकहममद के वसीले और उनकी बुज़ुर्गी के तुफैल, के मेरी लग्ज़िश को मुआफ़ फरमा दे !"
     उन्हें याद आ गया था के जब उनके बदनमें रूह दाखिल हुई और आँख खुली, तो शाके अर्श पर अल्लाह के नाम के साथ "मोहम्मदुर रसूलुल्लाह" भी लिखा था। लेहाज़ा उनकी वजाहत व करामत का वसीला पकड़ा तो अपने महबूबﷺ का वसीला सुन कर अल्लाह ने दर गुज़र फरमा दिया उन्हें जुमुआ के दिन।
     उनकी तौबा सच्ची थी। तारीफ़, शर्मिंदगी के साथ तौबा थी। और ऐसी तौबा पर बेशक वही अल्लाह दर गुज़र फर्मानेवाला और बख्शनेवाला है।
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