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Wednesday 20 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*_उम्र भर की भागदौड़_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     उस वक़्त केसी बेबसी होगी जब रूह जिस्म से जुदा हो चुकी होगी, वो आलम किस क़दर बेबसी का आलम होगा जिस वक़्त बेश क़ीमती पकड़े उतारे जा रहे होंगे, गस्साल नहला रहा होगा, लठ्ठे का कफ़न पहनाया जा रहा होगा, केसी हसरत की घड़ी होगी जब जनाज़ा उठाया जा रहा होगा, हाए ! हाए ! वो दुन्या जिसे सवारने के लिये उम्र भर भागदौड़ की थी, जिसकी खातिर रातो की नींदे उड़ाई थी, तरह तरह के खतरे मोल लिये थे, हासिदिन के रुकावटे खड़ी करने के बा वुजूद भी जान लड़ा कर दुन्या का मॉल कमाते रहे थे, खूब खूब दौलत बढ़ाते रहे थे, जिस मकान को मज़बूत तामीर किया था फिर उसको तरह तरह के फर्नीचर से आरास्ता किया था, वो सभी कुछ छोड़ कर रुखसत होना पड़ रहा होगा।
     आह ! क़ीमती लिबास खुटी पर टंगा रह जाएगा, कार हुइ तो गेरेज में खड़ी रह जाएगी, ऐसो तरब के अस्बाब और हर तरह का माल सामान धरा का धरा रह जाएगा।
     उस वक़्त *मुर्दे की बेबसी* इन्तिहा को पहुचेगी जब उसको रोशनियों से जग मगाती आरिजि खुशियो से मुस्कुराती दुन्याए ना पाएदार के फानी घर से निकाल कर अँधेरी क़ब्र में मुन्तकिल करने के लिये उस के नाज़ उठाने वाले उसको कन्धों पर लाद कर सूए क़ब्रिस्तान चल पड़ेंगे।
*मुर्दे की बेबसी 2*
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