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Monday 11 July 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-35
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ③④-तर्जुमह*
और जब हुक्म दिया हमने फरिश्तों के लिये, सज्दा करो आदमको, तो सबने सज्दा किया सिवा इब्लीस के। उस ने इनकार किया और बड़ा बना और हो गया काफिरोसे।

*तफ़सीर*
और हा ! तुम याद करो उस वाक़ेआ को जब हुक्म दिया था हमने फरिश्तों को,  उनकी बेहतरी के लिये और फ़रमाया था के सज्दा करो आदम को। तो सबने सज्दा किया, फरिश्तों में से किसी एक ने भी नाफ़रमानी न की और 100 या 500 बरस तक सजदे में पड़े रहे, सुवा इब्लीस के।
फरिश्तों तक पहोचने को पंहुचा मगर जब ये हुक्म सुना, तो खड़ा रह गया और सज्दा करने से साफ़ इनकार किया इब्लीस ने और बावजूद के बड़ा न था, मगर गुरुर में आकर बड़ा बना, जिसके नतीजे में मरदूद ठहरा और हो गया काफिरो से।
एक नबिकि ताज़ीम से इनकार किया, तो काफ़िर हो गया, के ये इन्कार तौहीन है और नबिकि तौहीन कुफ़्र है।
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