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Monday 1 August 2016

सिरते मुस्तफाﷺ


*_हज़रते ज़ैद की शहादत_*

     हज़रते ज़ैद बिन दषीनाرضي الله تعالي عنه के क़त्ल का तमाशा देखने के लिये कुफ़्फ़ारे कुरैश कशिर तादाद में जमा हो गए जिन में अबू सुफ़यान भी था। जब इन को सूली पर चढ़ा कर क़ातिल ने तलवार हाथ में ली तो अबू सुफ़यान ने कहा की क्यू ? ऐ ज़ैद ! सच कहना, अगर इस वक़्त तुम्हारी जगह मुहम्मद इस तरह क़त्ल किये जाते तो क्या तुम इस को पसन्द करते ?
     हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنه अबू सुफ़यान की इस ताना ज़नी को सुन कर तड़प गए और जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया कि ऐ अबू सुफ़यान ! खुदा की क़सम ! में अपनी जान को क़ुरबान कर देना अज़ीज़ समझता हु मगर मेरे प्यारे रसूलﷺ के मुक़द्दस पाउ के तल्वे में एक काँटा भी चुभ जाए। मुझे कभी भी ये गवारा नही हो सकता।
     *मुझे हो नाज़ किस्मत पर अगर नाम मुहम्मद पर*
     *ये सर कट जाए और तेरा कफे पा उस को ठुकराए*
     *ये सब कुछ है गवारा पर ये मुझ से हो नही सकता*
     *की उन के पाउ के तल्वे में इक कांटा भी चुभ जाए*
ये सुन कर अबू सुफ़यान ने कहा की में ने बड़े बड़े महब्बत करने वालो को देखा है। मगर मुहम्मद के आशिक़ो की मिषाल नही मिल सकती। सफ्वान के गुलाम नस्तास ने तलवार से उन की गर्दन मारी।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 293*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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