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Thursday 18 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #10

*_सूरतुल बक़रह, आयत, ①_*
अलिफ़ लाम मीम
*तफ़सीर*
     सूरतों के शुरू में जो अलग से हुरूफ़ या अक्षर आते है उनके बारे में यही मानना है कि अल्लाह के राज़ों में से है और मुतशाबिहात यानी रहस्यमय भी. उनका मतलब अल्लाह और रसूलﷺ जानें. हम उसके सच्चे होने पर ईमान लाते

*_आयत, ②_*
वह बुलन्द रूत्बा किताब कोई शक की जगह नहीं 1⃣
इसमें हिदायत है डर वालों को 2⃣
*तफ़सीर*
     1⃣ इसलिये कि शक उसमें होता है जिसका सूबूत या दलील या प्रमाण न हो.
     क़ुरआन शरीफ़ ऐसे खुले और ताक़त वाले सुबूत या प्रमाण रखता है जो जानकार और इन्साफ वाले आदमी को इसके किताबे इलाही और सच होने के यक़ीन पर मज़बूत करते हैं. तो यह किताब किसी तरह शक के क़ाबिल नहीं,
     जिस तरह अन्धे के इन्कार से सूरज का वुजूद या अस्तित्व संदिग्ध या शुबह वाला नहीं होता, ऐसे ही दुश्मनी रखने वाले काले दिल के इन्कार से यह किताब शुबह वाली नहीं हो सकती.
     2⃣ “हुदल लिल मुत्तक़ीन” (यानि इसमें हिदायत है डर वालों को) हालांकि क़ुरआन शरीफ़ की हिदायत या मार्गदर्शन हर पढ़ने वाले के लिये आम है, चाहे वह मूमिन यानी ईमान वाला हो या काफ़िर, जैसा कि दूसरी आयत में फ़रमाया “हुदल लिन नासे” यानी “हिदायत सारे इन्सानों के लिये” लेकिन चूंकि इसका फ़ायदा अल्लाह से डरने वालों या एहले तक़वा को होता है इसीलिये फ़रमाया गया _ हिदायत डरवालों को.
     जैसे कहते हैं बारिश हरियाली के लिये है यानी फ़ायदा इससे हरियाली का ही होता है हालांकि यह बरसती ऊसर और बंजर ज़मीन पर भी है.
     “तक़वा” के कई मानी आते हैं, नफ्स या अन्त:करण को डर वाली चीज़ से बचाना तक़वा कहलाता है. शरीअत की भाषा में तक़वा कहते हैं अपने आपको गुनाहों और उन चीज़ों से बचाना जिन्हें अपनाने से अल्लाह तआला ने मना फ़रमाया हैं.
     हज़रत इब्ने अब्बास (अल्लाह उन से राज़ी रहे) ने फ़रमाया मुत्तक़ी या अल्लाह से डरने वाला वह है जो अल्लाह के अलावा किसी की इबादत और बड़े गुनाहों और बुरी बातों से बचा रहे.
     दूसरों ने कहा है मुत्तक़ी अपने आप को दूसरों से बेहतर न समझे. कुछ कहते हैं तक़वा हराम या वर्जित चीज़ों का छोड़ना और अल्लाह के आदेशों या एहकामात का अदा करना है. औरों के अनुसार आदेशों के पालन पर डटे रहना और ताअत पर ग़ुरूर से बचना तक़वा है. कुछ का कहना है कि तेरा रब तुझे वहाँ न पाए जहाँ उसने मना फ़रमाया है.
     एक कथन यह भी है कि तक़वा हुज़ूर (अल्लाह के दूरूद और सलाम हों उनपर) और उनके साथी सहाबा (अल्लाह उन से राज़ी रहे) के रास्ते पर चलने का नाम है.
*✍🏽ख़ाज़िन*
     यह तमाम मानी एक दूसरे से जुड़े हैं. तक़वा के दर्जें बहुत हैं_ आम आदमी का तक़वा ईमान लाकर कु्फ्र से बचना, उनसे ऊपर के दर्जें के आदिमयों का तक़वा उन बातों पर अमल करना जिनका अल्लाह ने हुक्म दिया है और उन बातों से दूर रहना जिनसे अल्लाह ने मना किया है. ख़वास यानी विशेष दर्जें के आदमियों का तक़वा एसी हर चीज़ का छोड़ना है जो अल्लाह तआला से दूर कर दे या उसे भुला दे.
*✍🏽जुमल*
     इमाम अहमद रज़ा खाँ, मुहद्सि _ए बरेलवी (अल्लाह की रहमत हो उनपर)ने फ़रमाया _ तक़वा सात तरह का है.
(1) कुफ्र से बचना, यह अल्लाह तआला की मेहरबानी से हर मुसलमान को हासिल है
(2) बद_मज़हबी या अधर्म से बचना _ यह हर सुन्नी को नसीब है,
(3) हर बड़े गुनाह से बचना
(4) छोटे गुनाह से भी दूर रहना
(5) जिन बातों की अच्छाई में शक या संदेह हो उनसे बचना
(6) शहवत यानी वासना से बचना
(7) गै़र की तरफ़ खिंचने से अपने आप को रोकना.
     यह बहुत ही विशेष आदमियों का दर्जा है. क़ुरआन शरीफ़ इन सातों मरतबों या श्रेणियों के लिये हिदायत है.
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