हिस्सा-55
*_सूरए बक़रह, पारह 01_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*आयत ⑤④, तर्जुमह*
और जब के कहा मूसा ने अपनी क़ौम के लिये के अय मेरी क़ौम ! बेशक तुमने अंधेर कर दिया खुद अपने लिये अपने बूत बना लेने से गाय को। तो मुतवज्जेह हो जाओ अपने पैदा करनेवाले की तरफ, के क़त्ल कर डालो अपनों को। ये बेहतर है तुम्हारे लिये तुम्हारे पैदा करनेवाले के नज़दीक। पद तौबा क़ुबूल फरमा ली तुम्हारी। बेशक वही तौबा फरमाने वाला बख्शने वाला है।
*तर्जुमह*
और इस वाक़ीए का एक टुकड़ा ये भी है के जब के कफे तुर से वापसी पर गाय पूजा देखि थी, तो कहा था मूसा ने अपनी क़ौम के फायदे के लिये और ऐलान किया था के अय मेरी क़ौम ! बेशक तुमने बहोत बड़ा अंधेर कर दिया खुद अपने लिये किसीका कुछ न बिगड़ा, खुद तुम्हारा बिगड़ा, तुम्हारे अपने बूत बना केने से गाय को। ऐसा मुश्रिकाना जुर्म कर डाला है। तो इसके सिवा नजात की कोई सूरत नही के मुतवज्जेह हो जाओ अपने पैदा करनेवाले अल्लाह की तरफ, सच्चे दिलसे तौबा करो और उसके हुक्म के सामने गर्दन डालदो (के क़त्ल कर डालो) अपने हाथ में तलवार ले कर खुद अपनों को। हर बूत परस्त गर्दन झुक कर खड़ा हो जाए और जो इस जुर्म में न था, वो गर्दन कटता चला जाए।
तौबा का ये तरीका रह गया है जो निहायत बेहतर है तुम्हारे लिये। इसीमे तुम्हारा भला है। किसी दूसरे का नही, बल्कि खुद तुम्हारे पैदा करनेवाले के नज़दीक। क्यू के ईमान लाने के बाद तुम गाय पूजा में सबब मुर्तद हो चुके। और मुर्तद की सज़ा अल्लाह के नज़दीक, तौबा करने के साथ साथ क़त्ल है। (हज़रते मूसा की शरीअत में मुर्तद की सज़ा तौबा के साथ क़त्ल थी)
चुनांचे मुजरिमो ने ऐसा ही किया और दो जानू बैठ कर गर्दन झुक दी और क़त्ले आम होता रहा। मगर किसीने सर न उठाया, न जुम्बिश की। यहाँ तक के 70,000 को उन 12,000 ने जो हज़रते हारून के साथी थे और गाय पूजा में शरीक न थे, उन्होंने क़त्ल कर डाला, इस मन्ज़र से हज़रते मूसा व हज़रते हारून के रहमो करम में जोश आ गया। हाथ उठा कर दुआ की के अल्लाह अब बचे हुओ पर रहम फरमा।
पस बनी इस्राइल के इस तौबाके अंदाज़ और हज़रते मूसा व हारून की दुआ की ब दौलत तौबा क़ुबूल फरमा ली तुम्हारी अल्लाह ने। क़त्ल होने वालो को शहीद का दर्ज़ा बख्शा और जो बच गए, उन्हें माफ़ फरमा दिया और बख्श दिया। बेशक वही अल्लाह तौबा क़ुबूल फर्मानेवाला, बख्शनेवाला है। जिसकी तौबा वो न क़ुबूल फरमाए, तो फिर कौन क़ुबूल करे ? और जिसकी तौबा वो क़ुबूल फरमाए, उसे कोई रद नही कर सकता।
___________________________________
खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*आयत ⑤④, तर्जुमह*
और जब के कहा मूसा ने अपनी क़ौम के लिये के अय मेरी क़ौम ! बेशक तुमने अंधेर कर दिया खुद अपने लिये अपने बूत बना लेने से गाय को। तो मुतवज्जेह हो जाओ अपने पैदा करनेवाले की तरफ, के क़त्ल कर डालो अपनों को। ये बेहतर है तुम्हारे लिये तुम्हारे पैदा करनेवाले के नज़दीक। पद तौबा क़ुबूल फरमा ली तुम्हारी। बेशक वही तौबा फरमाने वाला बख्शने वाला है।
*तर्जुमह*
और इस वाक़ीए का एक टुकड़ा ये भी है के जब के कफे तुर से वापसी पर गाय पूजा देखि थी, तो कहा था मूसा ने अपनी क़ौम के फायदे के लिये और ऐलान किया था के अय मेरी क़ौम ! बेशक तुमने बहोत बड़ा अंधेर कर दिया खुद अपने लिये किसीका कुछ न बिगड़ा, खुद तुम्हारा बिगड़ा, तुम्हारे अपने बूत बना केने से गाय को। ऐसा मुश्रिकाना जुर्म कर डाला है। तो इसके सिवा नजात की कोई सूरत नही के मुतवज्जेह हो जाओ अपने पैदा करनेवाले अल्लाह की तरफ, सच्चे दिलसे तौबा करो और उसके हुक्म के सामने गर्दन डालदो (के क़त्ल कर डालो) अपने हाथ में तलवार ले कर खुद अपनों को। हर बूत परस्त गर्दन झुक कर खड़ा हो जाए और जो इस जुर्म में न था, वो गर्दन कटता चला जाए।
तौबा का ये तरीका रह गया है जो निहायत बेहतर है तुम्हारे लिये। इसीमे तुम्हारा भला है। किसी दूसरे का नही, बल्कि खुद तुम्हारे पैदा करनेवाले के नज़दीक। क्यू के ईमान लाने के बाद तुम गाय पूजा में सबब मुर्तद हो चुके। और मुर्तद की सज़ा अल्लाह के नज़दीक, तौबा करने के साथ साथ क़त्ल है। (हज़रते मूसा की शरीअत में मुर्तद की सज़ा तौबा के साथ क़त्ल थी)
चुनांचे मुजरिमो ने ऐसा ही किया और दो जानू बैठ कर गर्दन झुक दी और क़त्ले आम होता रहा। मगर किसीने सर न उठाया, न जुम्बिश की। यहाँ तक के 70,000 को उन 12,000 ने जो हज़रते हारून के साथी थे और गाय पूजा में शरीक न थे, उन्होंने क़त्ल कर डाला, इस मन्ज़र से हज़रते मूसा व हज़रते हारून के रहमो करम में जोश आ गया। हाथ उठा कर दुआ की के अल्लाह अब बचे हुओ पर रहम फरमा।
पस बनी इस्राइल के इस तौबाके अंदाज़ और हज़रते मूसा व हारून की दुआ की ब दौलत तौबा क़ुबूल फरमा ली तुम्हारी अल्लाह ने। क़त्ल होने वालो को शहीद का दर्ज़ा बख्शा और जो बच गए, उन्हें माफ़ फरमा दिया और बख्श दिया। बेशक वही अल्लाह तौबा क़ुबूल फर्मानेवाला, बख्शनेवाला है। जिसकी तौबा वो न क़ुबूल फरमाए, तो फिर कौन क़ुबूल करे ? और जिसकी तौबा वो क़ुबूल फरमाए, उसे कोई रद नही कर सकता।
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