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Sunday 11 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#33
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③ⓞ_*
और याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से फ़रमाया मैं ज़मीन में अपना नायब बनाने वाला हूं(1)
बोले क्या ऐसे को (नायब) करेगा जो उसमें फ़साद फैलाएगा और ख़ून बहाएगा (2)
और तुझे सराहते हुए तेरी तस्बीह (जाप) करते हैं और तेरी पाकी बोलते हैं फ़रमाया मुझे मालूम है जो तुम नहीं जानते (3)

*तफ़सीर*
      (1) ख़लीफ़ा निर्देशो और आदेशों के जारी करने और दूसरे अधिकारों में अस्ल का नायब होता है. यहाँ ख़लीफ़ा से हज़रत आदम (अल्लाह की सलामती उनपर) मुराद है. अगरचे और सारे नबी भी अल्लाह तआला के ख़लीफ़ा हैं. हज़रत दाउद  अलैहिस्सलाम के बारे में फ़रमाया : “या दाउदो इन्ना जअलनाका ख़लीफ़तन फ़िलअर्दे” (सूरए सॉद, आयत 26) यानी ऐ दाऊद,  बेशक हमने तुझे ज़मीन में नायब किया, तो लोगो में सच्चा हुक्म कर.फ़रिश्तों को हज़रत आदम की ख़िलाफ़त की ख़बर इसलिये दी गई कि वो उनके ख़लीफ़ा बनाए जाने की हिकमत (रहस्य) पूछ कर मालूम करलें और उनपर ख़लीफ़ा की बुज़र्गी और शान ज़ाहिर हो कि उनको पैदाइश से पहले ही ख़लीफ़ा का लक़ब अता हुआ और आसमान वालों को उनकी पैदाइश की ख़ुशख़बरी दी गई.
     इसमें बन्दों को तालीम है कि वो काम से पहले मशवरा किया करें और अल्लाह तआला इससे पाक है कि उसको मशवरे की ज़रूरत हो.
     (2) फ़रिश्तों को मक़सद एतिराज या हज़रत आदम पर लांछन नहीं, बल्कि ख़िलाफ़त का रहस्य मालूम करना है, और इंसानों की तरफ़ फ़साद फैलाने की बात जोड़ना इसकी जानकारी या तो उन्हें अल्लाह तआला की तरफ़ से दी गई हो या लौहे मेहफ़ूज से प्राप्त हुई हो या ख़ुद उन्होंने जिन्नात की तुलना में अन्दाज़ा लगाया हो.
     (3) यानी मेरी हिकमतें (रहस्य) तुम पर ज़ाहिर नहीं. बात यह है कि इन्सानों में नबी भी होंगे, औलिया भी, उलमा भी, और वो इल्म और अमल दोनों एतिबार से फज़ीलतों (महानताओ) के पूरक होंगे.
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