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Tuesday 6 September 2016

फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल

#02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ारुके आज़म और सरकार की दिलजुइ !_*
     हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه इरशाद फरमाते है : एक बार हुज़ूरﷺ गमगीन हालत में अपने मेहमान खाने में तशरीफ़ फरमा थे। में आपﷺ के गुलाम के पास आया और कहा "रसूलल्लाहﷺ से मेरे दाखिल होने की इजाज़त मांगो"। उसने वापस आ कर कहा : में ने हुज़ूरﷺ की बारगाह में आप का ज़िक्र तो किया है मगर आप ने कोई जवाब इरशाद नहीं फ़रमाया।
     थोड़ी देर बाद मेने फिर कहा की "हुज़ूरﷺ से मेरी हाजरी की इजाज़त मांगो" वो गया और वापस आ कर फिर कहा : मेने हुज़ूरﷺ से आप का ज़िक्र किया मगर आप ने कोई जवाब नही दिया।
     में कुछ कहे बगैर वापस पलटा तो गुलाम ने आवाज़ दी की आप अंदर आ जाइये ! इजाज़त मिल गई है। चुनांचे में अंदर गया आप को सलाम किया। आपﷺ एक चटाई पर टेक लगाए तशरीफ़ फरमा थे, जिस के निशानात आप के पहलू पर वाज़ेह नज़र आ रहे थे, फिर में खड़े खड़े हुज़ूर की दिलजुइ के लिये अर्ज़ गुज़ार हुवा : या रसूलल्लाहﷺ ! में आप के साथ बाते करके आप को मानूस करना चाहता हु। हम कुरैश जब मक्का में थे तो अपनी औरतो पर ग़ालिब थे और यहाँ मदीना में आ कर हमारा ऐसी क़ौम से वासित पड़ा, जिन पर औरते ग़ालिब है।
     ये सुन कर हुज़ूﷺर मुस्कुराए। मेने कहा या रसूलल्लाहﷺ में हफ्सा के पास गया था और उन से कहा : आप अपने साथ वाली (हज़रते आइशा सिद्दीक़ा) पर कभी रश्क न करना क्यू की वो तुम से ज़्यादा हसीन और हुज़ूरﷺ की पसंदीदा ज़ौजा है। ये सुन कर हुज़ूरﷺ दोबारा मुस्कुराए।

     इस वाक़ीए से अंदाज़ा लगाइये कि फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه को येभी ग्वार न था की सरकारﷺ किसी तकलीफ या गम में मुब्तला हो, इसी लिये आप ने प्यारे आक़ाﷺ को मानूस करना चाहा और बिल आखिर आप अपने इस इरादे में कामयाब भी हो गए और रसूलल्लाहﷺ इन की बातो पर मुस्कुरा दिए।
     ज़रा गौर कीजिये ! एक तरफ सहाबए किराम का ये आपमें है की वो आपﷺ को ग़मज़दा देख कर उदास हो जाते और एक हम है की शबो रोज़ गुनाहो में बसर करते हुवे हुज़ूरﷺ की जाते बा बरकत को अज़िय्यत पहुचाते है मगर हमे इस का ज़रा भी एहसास नही।
     याद् रखिये ! इस बात में शक नही की आज भी आपﷺ अपने उम्मतियो के तमाम अहवाल को मुलाहजा फरमाते है।
     चुनांचे रसूलल्लाहﷺ फरमाते है : मेरी ज़िदगी तुम्हारे लिए बेहतर है तुम मुझ से बाते करते रहो और में तुम से, और मेरी वफ़ात भी तुम्हारे लिये बेहतर, तुम्हारे आमाल मुझ पर पेश किये जाएंगे, जब में कोई भलाई देखूंगा तो हम्दे इलाही बजा लाऊँगा और जब बुराई देखूंगा तुम्हारी बख्शीश की दुआ करूँगा।
*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 4,5*
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