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Wednesday 5 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​​इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते​​​_* #03
अगर्चे अकाबिर सहाबए किराम हज़रते इब्ने अब्बास व हज़रते इब्ने उमर व हज़रते जाबिर व हज़रते अबू सईद व हज़रते अबू वाक़ीद लैषीرضي الله تعالي عنهم वग़ैरहु हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की इस राय से मुत्तफ़िक़ न थे और इन्हें कुफियो के अहद व मवाषिक का ऐतिबार न था, इमाम की महब्बत और शहादते इमाम की शोहरत इन सब के दिलो में इख्तिलाज पैदा कर रही थी, गोकि ये यक़ीन करने की भी कोई वजह न थी की शहादत का येही वक़्त है और इसी सफर में ये मरहला दरपेश होगा लेकिन अन्देशा मानेअ था। हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه के सामने मसअले की ये सूरत दरपेश थी की इस दस्तिदआ को रोकने के लिये उज़्रे शरई क्या है।

     इधर ऐसे जलिलुल क़द्र सहाबा के शदीद इसरार का लिहाज़, उधर अहले कूफा की इस्तिदआ रद न फरमाने के लिये कोई शरई उज़्र न होना हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के लिये निहायत पेचीदा मसअला था जिस का हल ब जुज़ इस के कुछ नज़र न आया की पहले हज़रते इमाम मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को भेजा जाए अगर कुफियो ने बद अहदी व बे वफाई की तो उज़्रे शरई मिल जाएगा और अगर वो अपने अहद पर क़ाइम रहे तो सहाबा को तसल्ली दी जा सकेगी।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 117*
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