*कर्ज़ा उतार ने का वज़ीफ़ा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
मरवी हुवा की एक मुकातब (मुकातब उस गुलाम को कहते है जिसने अपने आक़ा से माल की अदाएगी के बदले आज़ादी का मुआह्दा किया हो) ने हज़रते मुश्किल कुशाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की बारगाह में अर्ज़ की : में अपनी आज़ादी की कीमत अदा करने से आजिज़ हु मेरी मदद फरमाइये। आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया : में तुम्हे चन्द कलिमात न सिखाऊँ जो रसूलल्लाहﷺ ने मुझे सिखाए है, अगर तुम पर जबले सैर (सैर एक पहाड़ का नाम है) जितना क़र्ज़ होगा तो अल्लाह तुम्हारी तरफ से अदा कर देगा तुम यु कहा को :
*اَللّٰهُمَّ اكْفِكِىْ بِحَلَالِكَ عَنْ حَرَامِكَ وَاَغَنِِىْ بِفَضْلِكَ عَمَّنْ سِوَاكَ*
तरजमा : या अल्लाह मुझे हलाल रिज़्क़ अता फरमा कर हराम से बचा और अपने फ़ज़लो करम से अपने सिवा गैरो से बे नियाज़ कर दे।
ता हुसूले मुराद हर नमाज़ के बाद 11 और सुब्ह शाम 100 बार रोज़ाना आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़े।
*सुनन तिर्मिज़ी, 5/329*
*मदनी पंजसुरह, 245*
*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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मरवी हुवा की एक मुकातब (मुकातब उस गुलाम को कहते है जिसने अपने आक़ा से माल की अदाएगी के बदले आज़ादी का मुआह्दा किया हो) ने हज़रते मुश्किल कुशाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की बारगाह में अर्ज़ की : में अपनी आज़ादी की कीमत अदा करने से आजिज़ हु मेरी मदद फरमाइये। आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया : में तुम्हे चन्द कलिमात न सिखाऊँ जो रसूलल्लाहﷺ ने मुझे सिखाए है, अगर तुम पर जबले सैर (सैर एक पहाड़ का नाम है) जितना क़र्ज़ होगा तो अल्लाह तुम्हारी तरफ से अदा कर देगा तुम यु कहा को :
*اَللّٰهُمَّ اكْفِكِىْ بِحَلَالِكَ عَنْ حَرَامِكَ وَاَغَنِِىْ بِفَضْلِكَ عَمَّنْ سِوَاكَ*
तरजमा : या अल्लाह मुझे हलाल रिज़्क़ अता फरमा कर हराम से बचा और अपने फ़ज़लो करम से अपने सिवा गैरो से बे नियाज़ कर दे।
ता हुसूले मुराद हर नमाज़ के बाद 11 और सुब्ह शाम 100 बार रोज़ाना आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़े।
*सुनन तिर्मिज़ी, 5/329*
*मदनी पंजसुरह, 245*
*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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