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Thursday 17 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #79
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑦_*
तुम फ़रमाओ जो कोई जिब्रील का दुश्मन हो (1)
तो उस (जिब्रील) ने तो तुम्हारे दिल पर अल्लाह के हुक्म से यह कुरआन उतारा अगली किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता और हिदायत और बशारत (ख़ुशख़बरी) मुसलमानों को(2)

*तफ़सीर*
     (1) यहूदियों के आलिम अब्दुल्लाह बिन सूरिया ने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, आपके पास आसमान से कौन फ़रिश्ता आता है. फ़रमाया, जिब्रील. इब्ने सूरिया ने कहा वह हमारा दुश्मन है कि हमपर कड़ा अज़ाब उतारता है. कई बार हमसे दुश्मनी कर चुका है. अगर आपके पास मीकाईल आते तो हम आप पर ईमान ले आते.
     (2) तो यहूदियों की दुश्मनी जिब्रील के साथ बेमानी यानी बेकार है. बल्कि अगर उन्हें इन्साफ़ होता तो वो जिब्रीले अमीन से महब्बत करते और उनके शुक्रगुज़ार होते कि वो ऐसी किताब लाए जिससे उनकी किताबों की पुष्टि होती है. और “बुशरा लिल मूमिनीन” (और हिदायत व बशारत मुसलमानों को) फ़रमाने में यहूदियों का रद है कि अब तो जिब्रील हिदायत और ख़ुशख़बरी ला रहे हैं फिर भी तुम दुश्मनी से बाज़ नही आते.
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