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Thursday 24 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #86
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑦_*
     क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाही और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई हिमायती न मददगार

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑧_*
     क्या यह चाहते हो कि अपने रसूल से वैसा सवाल करो जो मूसा से पहले हुआ था (7)
और जो ईमान के बदले कुफ़्र लें (8)
वह ठीक रास्ता बहक गया

*तफ़सीर*
     (7) यहूदियों ने कहा ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) हमारे पास आप ऐसी किताब लाइये जो आसमान से एक साथ उतरे. उनके बारे में यह आयत नाज़िल हुई.
     (8) यानी जो आयतें उतर चुकी हैं उनके क़ुबुल करने में बेजा (व्यर्थ) बहस करे और दूसरी आयतें तलब करे. इससे मालूम हुआ कि जिस सवाल में ख़राबी हो उसे बुजुर्गा के सामने पेश करना जायज़ नहीं और सबसे बड़ी ख़राबी यह कि उससे नाफ़रमानी ज़ाहिर होती हो.
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