*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #105
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑨_*
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के बारे में झगड़ते हो (13)
हालांकि वह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी (14)
और हमारी करनी हमारे साथ और तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ और निरे उसी के हैं (15)
*तफ़सीर*
(13) यहूदियों ने मुसलमानों से कहा हम पहली किताब वाले हैं, हमारा क़िबला पुराना है, हमारा दीन क़दीम और प्राचीन है. हम में से नबी हुए हैं. अगर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम नबी होते तो हम में से ही होते. इस पर यह मुबारक आयत उतरी.
(14) उसे इख़्तियार है कि अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी बनाए, अरब में से हो या दूसरों में से.
(15) किसी दूसरे को अल्लाह के साथ शरीक नहीं करते और इबादत और फ़रमाँबरदारी ख़ालिस उसी के लिये करते हैं. तो हम महरबानियों और इज्ज़त के मुस्तहिक़ हैं.
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तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के बारे में झगड़ते हो (13)
हालांकि वह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी (14)
और हमारी करनी हमारे साथ और तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ और निरे उसी के हैं (15)
*तफ़सीर*
(13) यहूदियों ने मुसलमानों से कहा हम पहली किताब वाले हैं, हमारा क़िबला पुराना है, हमारा दीन क़दीम और प्राचीन है. हम में से नबी हुए हैं. अगर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम नबी होते तो हम में से ही होते. इस पर यह मुबारक आयत उतरी.
(14) उसे इख़्तियार है कि अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी बनाए, अरब में से हो या दूसरों में से.
(15) किसी दूसरे को अल्लाह के साथ शरीक नहीं करते और इबादत और फ़रमाँबरदारी ख़ालिस उसी के लिये करते हैं. तो हम महरबानियों और इज्ज़त के मुस्तहिक़ हैं.
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