*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #107
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④②_*
अब कहेंगे (1)
बेवकूफ़ लोग किसने फेर दिया मुसलमानों को, उनके इस क़िबले से, जिसपर थे (2)
तुम फ़रमा दो कि पूरब और पश्चिम सब अल्लाह ही का है (3)
जिसे चाहे सीधी राह चलाता है.
*तफ़सीर*
(1) यह आयत यहूदियों के बारे में नाज़िल हुई, जब बैतुल मक़दिस की जगह काबे को क़िबला बनाया गया. इस पर उन्होंने ताना किया क्योंकि उन्हें यह नागवार था और वो स्थगन आदेश के क़ायल न थे.
एक क़ौल पर, यह आयत मक्के के मुश्रिकों के और एक क़ौल पर, मुनाफ़िक़ों के बारे में उतरी और यह भी हो सकता है कि इससे काफ़िरों के ये सब गिरोह मुराद हों, क्योंकि ताना देने और बुरा भला कहने में सब शरीक थे. और काफ़िरों के ताना देने से पहले क़ुरआने पाक में इसकी ख़बर दे देना ग़ैबी ख़बरों में से है.
तअना देने वालों को बेवक़ूफ़ इसलिये कहा गया कि वो निहायत खुली बात पर ऐतिराज करने लगे जबकि पिछले नबीयों ने आपका लक़ब “दो क़िबलों वाला” बताया भी था और क़िबले का बदला जाना ख़बर देते आए. ऐसे रौशन निशान से फ़ायदा न उठाया और ऐतिराज किये जाना परले दर्जे की मुर्खता है.
(2) क़िबला उस दिशा को कहते हैं जिसकी तरफ़ आदमी नमाज़ में मुंह करता है. यहाँ क़िबला से बैतुल मक़दिस मुराद है.
(3) उसे इख़्तियार है जिसे चाहे क़िबला बनाए. किसी को ऐतिराज का क्या हक़. बन्दे का काम फ़रमाँबरदारी है.
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बेवकूफ़ लोग किसने फेर दिया मुसलमानों को, उनके इस क़िबले से, जिसपर थे (2)
तुम फ़रमा दो कि पूरब और पश्चिम सब अल्लाह ही का है (3)
जिसे चाहे सीधी राह चलाता है.
*तफ़सीर*
(1) यह आयत यहूदियों के बारे में नाज़िल हुई, जब बैतुल मक़दिस की जगह काबे को क़िबला बनाया गया. इस पर उन्होंने ताना किया क्योंकि उन्हें यह नागवार था और वो स्थगन आदेश के क़ायल न थे.
एक क़ौल पर, यह आयत मक्के के मुश्रिकों के और एक क़ौल पर, मुनाफ़िक़ों के बारे में उतरी और यह भी हो सकता है कि इससे काफ़िरों के ये सब गिरोह मुराद हों, क्योंकि ताना देने और बुरा भला कहने में सब शरीक थे. और काफ़िरों के ताना देने से पहले क़ुरआने पाक में इसकी ख़बर दे देना ग़ैबी ख़बरों में से है.
तअना देने वालों को बेवक़ूफ़ इसलिये कहा गया कि वो निहायत खुली बात पर ऐतिराज करने लगे जबकि पिछले नबीयों ने आपका लक़ब “दो क़िबलों वाला” बताया भी था और क़िबले का बदला जाना ख़बर देते आए. ऐसे रौशन निशान से फ़ायदा न उठाया और ऐतिराज किये जाना परले दर्जे की मुर्खता है.
(2) क़िबला उस दिशा को कहते हैं जिसकी तरफ़ आदमी नमाज़ में मुंह करता है. यहाँ क़िबला से बैतुल मक़दिस मुराद है.
(3) उसे इख़्तियार है जिसे चाहे क़िबला बनाए. किसी को ऐतिराज का क्या हक़. बन्दे का काम फ़रमाँबरदारी है.
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