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Sunday 1 January 2017

*नमाज़ के वाजिबात* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     तकबीरे तहरिमा में लफ्ज़ "अल्लाहु अक्बर" कहना।
     फर्ज़ो की तीसरी और चौथी रकअत के इलावा बाक़ी तमाम नमाज़ों की हर रकअत में अलहम्द शरीफ पढना, सूरत मिलाना या क़ुरआने पाक की एक बड़ी आयत जो छोटी तिन आयतो के बराबर हो या तिन छोटी आयते पढ़ना।
     अलहम्द शरीफ का सूरत से पहले पढ़ना।
     अलहम्द शरीफ और सूरत के दरमियान "आमीन" और बिस्मिलाह के इलावा कुछ और न पढ़ना।
     किराअत के फौरन बाद रूकू करना।
     एक सज्दे के बाद बित्तरतिब दूसरा सज्दा करना
     तादिले अरकान यानि रूकू, सुजूद, क़ौमा और जल्सा में कम अज़ कम एक बार "सुब्हान अल्लाह" कहने की मिक़दार ठहरना।
     क़ौमा यानि रूकू से सीधे खड़े होना (बाज़ लोग कमर सीधी नहीं करते इस तरह उन का वाजिब छूट जाता है)
     जल्सा यानि दो सजदों के दरमियान सीधा बैठना (बाज़ लोग जल्द बाज़ी की वजह से बराबर सीधे बैठने से पहले ही दूसरे सज्दे में चले जाते है इस तरह उन का वाजिब तर्क हो जाता है चाहे कितनी ही जल्दी हो सीधा बैठना लाज़िमी है वरना नमाज़ मकरुहे तहरीमि वाजीबुल इआदा होगी) यानि नमाज़ फिर से पढ़नी होगी.
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 171*
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