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Tuesday 3 January 2017

*नमाज़ के वाजिबात* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दोनों तरफ सलाम फेरते वक़्त लफ्ज़ "अस्सलामु" दोनों बार वाजिब है। लफ्ज़ "अलैकुम" वाजिब नहीं बल्कि सुन्नत है।
     वित्र् में तकबीरे क़ुनूत कहना। वित्र् में दुआए क़ुनूत पढ़ना।
     इदैन की 6 तकबीरे। इदैन में दूसरी रकअत की तकबीरे रूकू और इस तकबीर के लिए लफ़्ज़े "अल्लाहु अक्बर" होना।
     जहरी नमाज़ मसलन मगरिब व ईशा की पहली और दूसरी रकअत और फ़ज्र, जुमुआ, इदैन, तरावीह और रमज़ान के वित्र् की हर रकअत में इमाम को जहर (यानि इतनी बुलंद आवाज़ की दूसरे लोग यानि वो कि सफे अव्वल में है सुन सके) से किराअत करना।
     गैर जहरी (मसलन जोहर व असर) में आहिस्ता किराअत करना।
     हर फ़र्ज़ व वाजिब का उस की जगह होना।
     रूकू हर रकअत में एक ही बार करना. सज्दा हर रकअत में दो बार करना। दूसरी रकअत से पहले क़ादह न करना।
     4 रकअत वाली नमाज़ में तीसरी रकअत पर क़ादह न करना। आयते सज्दा पढ़ी हो तो सज्दए तिलावत करना।
     सज्दए सहव वाजिब हुवा हो तो सज्दए सहव करना।
     दो फर्ज़ो  या दो वाजिब या फ़र्ज़ व वाजिब के दरमियान तिन तस्बीह की क़दर (यानि तिन बार सुब्हान अल्लाह कहने के मिक़दार) वक़्फ़ा न होना।
     इमाम जब किराअत करे ख्वाह बुलंद आवाज़ से हो या आहिस्ता आवाज़ से, मुक्तदि का चुप रहना।
     किराअत के सिवा तमाम वाजिबात में इमाम की पैरवी करना।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम,173*
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