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Tuesday 10 January 2017

*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*या गौषे आज़म ! खुदा के लिये कुछ अता हो* #03
     औलिया ए किराम की पाक रूहो का तअल्लुक़ जब ज़मीनी जिस्मो से टूटता है तो वो आलमे बाला से जा कर मिल जाती है और उस वक़्त किसी तरह का कोई पर्दा उन पर आड़ नही रहता बिलकुल इसी तरह वो हर चीज़ को देखती और हर आवाज़ सुनती हओ जेसे कोई दुन्या की ज़िन्दगी में अपने माथे की आँखों से आसमान, चाँद, सूरज व पहाड़ देखा करता है।
     ये शान तो आम औलिया ए किराम की है फिर जो सुल्ताने औलिया गौषे आज़मرضي الله تعالي عنه की शान का कौन अंदाज़ा लगा सकता है ?
     हज़रत शैख़ अब्दुलहक़ मुहद्दिस दहलवी अलैरहमा अपनी किताब "अशिअतुल लमआत शुरू बाब ज़ियारते क़ुबूर" में तहरीर फरमाते है : हज़रत इमाम गजाली अलैरहमा ने फ़रमाया, जिस से ज़िन्दगी में मदद मांगी जाती है उससे इन्तिकाल के बाद भी मदद मांगी जाए। एक जमाअत कहती है की जिन्दो की मदद से मुर्दो की मदद ताकतवर है। औलिया अल्लाह की हुक़ूमत जहानों में है।
     हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस अलैरहमा अपनी किताब "तफ़सीर फतहुल अज़ीज़" सफा 20 पर फरमाते है की : समझना चाहिए ! की किसी गैर से मदद मांगना इस तौर पर की उसे अल्लाह की मदद न समझे, ये हराम है। और अगर ध्यान अल्लाह की हिकमत के कारखाने का सबब जानकर उस से ज़ाहिरी मदद मांगी तो इरफ़ान से दूर नही है और शरीअत में भी जायज़ है और इस किस्म की इमदाद अम्बिया और औलिया ने भी मांगी है। लेकिन हक़ीक़त में ये गैरुल्लाह से मांगना नहीं है बल्कि अल्लाह ही की मदद है।
     और यही हज़रत शाह अलैरहमा फरमाते है : अल्लाह के काम जेसे लड़का देना, रोज़ी बढ़ाना, बीमार को अच्छा करना और इस जेसे हाजतो को मुशरिकीन खबीस रूहो और बुतो की तरफ निस्बत करते है और काफ़िर हो जाते है। जब की मुसलमान उन कामो को अल्लाह का हुक्म को मख्लूक़ की खासियत से जानते है, जेसे उसके बन्दों की दुआए, की ये बन्दे रब तआला की बारगाह से मांग कर लोगो की हाजत पूरी करते है और उन मोमिनो के ईमान में फर्क नही पड़ता।
*✍🏽तफ़सीरे अज़ीज़, सुरह बक़रह, सफा 460*
*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 23*​
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