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Friday 13 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #127
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦③_*
     उसने यही तुम पर हराम किये हैं मुर्दार (मृत) (7)
और ख़ून (8)
और सुअर का गोश्त (9)
और वो जानवर जो ग़ैर ख़ुदा का नाम लेकर ज़िब्ह किया गया (10)
तो जो नाचार हो (11)
न यूं कि ख़्वाहिश से खाए और न यूं कि ज़रूरत से आगे बढ़े तो उसपर गुनाह नहीं, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.

*तफ़सीर*
     (7) जो हलाल जानवर बग़ैर ज़िब्ह किये मर जाए या उसको शरई तरीक़े के ख़िलाफ़ मारा गया हो जैसे कि गला घोंट कर, या लाठी, पत्थर, ढेले, ग़ुल्ले, गोली मार कर हलाल किया गया हो, या वह गिरकर मर गया हो, या किसी जानवर ने सींग से मारा हो या किसी दरिन्दे ने हलाल किया हो, उसको मुर्दार कहतें. और इसी के हुक्म में दाख़िल है ज़िन्दा जानवर का वह अंग जो काट लिया गया हो. मुर्दार जानवर का खाना हराम है, मगर उसका पका हुआ चमड़ा काम में लाना और उसके बाल, सींग, हड्डी, ———-पट्ठे,———— खुरी वग़ैरह से फ़ायदा उठाना जायज़ है. (तफ़सीर अहमदी)
     (8) ख़ून हर जानवर का हराम है, अगर बहने वाला हो. दूसरी आयत में फ़रमाया “ओ दमम मस्फ़ूहन” (यानी या रगों का बहता ख़ून या बद जानवर का गोश्त, वह नजासत है)  (सूरए अनआम-145).
     (9) सुअर नजिसुल ऐन है, यानी अत्यन्त अपवित्र है, उसका गोश्त पोस्त, बाल, नाख़ुन वग़ैरह तमाम अंग नजिस, नापाक और हराम हैं. किसी को काम में लाना जायज़ नहीं. चूंकि ऊपर से खाने का बयान हो रहा है इसलिये यहाँ गोश्त के ज़िक्र को काफ़ी समझा गया.
     (10) जिस जानवर पर ज़िब्ह के वक़्त ग़ैर ख़ुदा का नाम लिया जाए, चाहे अकेले या ख़ुदा के नाम के साथ “और” मिलाकर, वह हराम है. और अगर ख़ुदा के नाम के साथ ग़ैर का नाम “और” कहे बिना मिलाया तो मकरूह है. अगर ज़िब्ह फ़क़त अल्लाह के नाम पर किया और उससे पहले या बाद में ग़ैर का नाम लिया, जैसे कि यह कहा अक़ीक़े का बकरा या वलीमे का दुम्बा या जिसकी तरफ़ से वह ज़बीहा है उसी का नाम लिया या जिन वलियों के लिये सवाब पहुंचाना मन्ज़ूर है, उनका नाम लिया, तो यह जायज़ है, इसमें कुछ हर्ज नहीं. (तफ़सीरे अहमदी)
     (11) “मुज़्तर” अर्थात नाचार वह है जो हराम चीज़ खाने पर मजबूर हो और उसको न खाने से जान जाने का डर हो, चाहे तो कड़ी भूक या नादारी के कारण जान पर बन जाए और कोई हलाल चीज़ हाथ न आए या कोई व्यक्ति हराम के खाने पर जब्र करता हो और उससे जान का डर हो. ऐसी हालत में जान बचाने के लिये हराम चीज़ का ज़रूरत भर यानी इतना खालेना जायज़ है कि मरने का डर न रहे.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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