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Saturday 14 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #128
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦④_*
     वो जो छुपाते हैं (12)
अल्लाह की उतारी किताब और उसके बदले ज़लील क़ीमत ले लेते हैं(13)
वो अपने पेट में आग ही भरते है (14)
और अल्लाह क़यामत के दिन उनसे बात न करेगा और न उन्हें सुथरा करे और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है.

*तफ़सीर*
     (12) यहूदियों के उलमा और सरदार, जो उम्मीद रखते थे कि आख़िरी ज़माने के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनमें से आएंगे. जब उन्होंने देखा कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम दूसरी क़ौम में से भेजे गए, तो उन्हें यह डर हुआ कि लोग तौरात और इंजील में हुज़ूर के गुण देखकर आपकी फ़रमाँबरदारी की तरफ़ झुक पडेंगे और उनके नज़राने, तोहफ़े, हदिये, सब बन्द हो जाएंगे, हुकूमत जाती रहेगी. इस ख़याल से उन्हें हसद पैदा हुआ और तौरात व इंजील में जो हुज़ूर की नअत और तारीफ़ और आपके वक़्ते नबुव्वत का बयान था, उन्होंने उसको छुपाया. इसपर यह मुबारक आयत उतरी. छुपाना यह भी है कि किताब के मज़मून पर किसी को सूचित न होने दिया जाए, न वह किसी को पढ़ के सुनाया जाए, न दिखाया जाए. और यह भी छुपाना है कि ग़लत मतलब निकाल कर मानी बदलने की कोशिश की जाए और किताब के अस्ल मानी पर पर्दा डाला जाए.
     (13) यानी दुनिया के तुच्छ नफ़े के लिये सत्य को छुपाते है.
     (14) क्योंकि ये रिश्वतें और यह हराम माल जो सच्चाई को छुपाने के बदले उन्होंने लिया है, उन्हें जहन्नम की आग में पहुंचाएगा.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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