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Wednesday 15 February 2017

*नेअमतों के ज़रीये इब्तेला (आज़माइश)* #3
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      उनका ये आलम इसी वजहसे भी है के वो दुनिया की हकीकतको नहीं समज़ते। दुनियाकी हकीकत ये है के ये बलाओं का घर है जो तल्खीयों, जेहालत, तकलीफों और कदुरतों की जगा है। दुनिया की असल मसाइब व बलीयात है और नेअमतें उसकी अस्लके खिलाफ है।
       चुनान्चे दुनिया हनज़ल (कड़वे फल) की तरह है। इसका फल तो तल्ख है मगर असर अच्छा है। कोई आदमी इसकी शीरीनीको उस वक्त तक नहीं पा सकता जब तक इस तल्खाबे को नोशेजान न कर ले। कोई शख्स शहेद को हरगिज़ नहीं पा सकता जब तक बलाओं का ज़ेहराब न पिये। चुनान्चे जिस ने दुनिया की बलाओं पर सब्र किया, उसे दुनियाकी नेअमतें नसीब हुई।
      चुनान्चे जब तक मज़दूर की पेशानी अर्कआलूद न हो, उसका जिस्म थक न जाए, रूह गमगीन और दिल तंग न हो, उसकी कुव्वत ज़ाइल, अपने जैसी मखलूक की खिदमत करने पर नफ़स ज़लील और नफसानियत शिकस्ता न हो, उसे मजदूरी नहीं दी जाती।
       जब मज़दूर इन सब कड़वाहटों को पिले, यही तलखीयां उसके लिये अच्छे खानो, मेवों, लिबासो और राहतों की नवीद(खुश खबरी) लाती है। अगरचे कम ही हों।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 105
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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