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Tuesday 28 February 2017

*फराइज़ और नवाफ़िल*  #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
   
      हज़रत गौसुल आज़म رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया: मोमिन के लिये ज़ुरूरी है के फराइज़ अदा करने में मश्गूल रहे। फराइज़के बाद नवाफ़िल अदा करता रहे। लेकिन फराइज़ अदा करने से पहले सनन-व-नवाफ़िल में मशरूफ रेहना हिमाकत-व-रउनत है। और इस तरह सनन-व-नवाफ़िलको ज़लील किया जाता है।
      ये तो ऐसा है के किसीको बादशाह अपनी खिदमत पर मामूर करे और वो उसके बजाए उस अमीर की खिदमत पर मुस्तईद हो जाए जो खुद बादशाह का गुलाम है और बादशाह की कुदरत-व-विलायत के ज़ेरे नगीं है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 111
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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