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Thursday 2 March 2017

*फराइज़ और नवाफ़िल*  #3
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

           सुन्नत को छोड़ कर नफलमें मश्गूल हो जाना भी ऐसा है के इस तरह फराइज़ की तरतीब बाकी नहीं रेहती निफली ईबादत फ़र्ज़ के साथ दाएमी मामूल की हैसियत रखती और न शारए इस्लाम (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें अदा करने की ताकीद फ़रमाई। मुसलमान पर फ़र्ज़ है के हराम और शिर्क से मुकम्मल इज़तेनाब करते हुए कज़ा-व-कद्र और तख़्लीके खुदावन्दी पर एतेराज़ न करे, और एहकामे इलाहीसे रुगरदां न हो।
        जैसा के आका सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम का इर्शाद है: "अल्लाह तआला की नाफरमानी करते हुए, मखलूककी इताअत जाइज़ नही।"

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 112
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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