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Monday 13 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #169
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②④_*
     और अल्लाह को अपनी क़िस्मतों का निशाना न बना लो कि एहसान और परहेज़गारी और लोगों में सुलह करने की क़सम कर लो और अल्लाह सुनता जानता है.

*तफ़सीर*
     हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाना ने अपने बेहनोई नोमान बिन बशीर के घर जाने और उनसे बात चीत करने और उनके दुश्मनों के साथ उनकी सुलह कराने से क़सम खाली थी. जब इसके बारे में उनसे कहा जाता था तो कह देते थे कि मैं क़सम खा चुका हूँ इसलिये यह काम कर ही नहीं सकता. इस सिलसिले में यह आयत नाज़िल हुई और नेक काम करने से क़सम खा लेने को मना किया गया. अगर कोई व्यक्ति नेकी से दूर रहने की क़सम खाले तो उसको चाहिये कि क़सम को पूरा न करे बल्कि वह नेक काम ज़रूर करे और क़सम का कफ़्फ़ारा दे.
     मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है, रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जिस शख़्स ने किसी बात पर क़सम खाली फिर मालूम हुआ कि अच्छाई और बेहतरी इसके ख़िलाफ़ में है तो चाहिये कि उस अच्छे काम को करे और क़सम का कफ़्फ़ारा दे.
     कुछ मुफ़स्सिरों ने यह भी कहा है कि इस आयत से बार बार क़सम खाने की मुमानिअत यानी मनाही साबित होती है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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