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Monday 20 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #175
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③①_*
     और  जब तुम औरतों को तलाक़ दो और  उनकी मीआद (अवधि) आ लगे (10) तो उस वक़्त तक या भलाई के साथ रोक लो (11) या नेकी के साथ छोड़ दो (12) और उन्हें ज़रर (तक़लीफ़) देने के लिये रोकना न हो कि हद से बढ़ो और जो ऐसा करे वह अपना ही नुक़सान करता है (13) और अल्लाह की आयतों को ठठ्ठा न बना लो. (14) और याद करो अल्लाह का एहसान जो तुमपर है (15) और वह जो तुम पर किताब और हिकमत (16) उतारी तुम्हें नसीहत देने को और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह सब कुछ जानता है (17).

*तफ़सीर*
     (10) यानी इद्दत ख़त्म होने के क़रीब हो. यह आयत साबित बिन यसार अन्सारी के बारे में उतरी. उन्होंने अपनी औरत को तलाक़ दी थी और जब इद्दत ख़त्म होने के क़रीब होती थी, रूजू कर लिया करते थे ताकि औरत कै़द में पड़ी रहे.
     (11) यानी निबाहने और अच्छा मामला करने की नियत से रूजू करो.
    (12) और इद्दत गुज़र जाने दो ताकि इद्दत के बाद वो आज़ाद हो जाएं.
    (13) कि अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफ़त करके गुनहगार होता है.
     (14) कि उनकी पर्वाह न करो और उनके ख़िलाफ़ अमल करो.
    (15) कि तुम्हें मुसलमान किया और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का उम्मती बनाया.
     (16) किताब से क़ुरआन और हिकमत से क़ुरआन के आदेश और रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत मुराद है.
     (17) उससे कुछ छुपा हुआ नहीं है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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