*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #185
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑦_*
और उनसे उनके नबी ने फ़रमाया बेशक अल्लाह ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बनाकर भेज (1) बोले उसे हम पर बादशाही कयो कर होगी (2) और हम उससे ज़्यादा सल्तनत के मुस्तहिक़ है और उसे माल में भी वुसअत नहीं दी गई (3) फ़रमाया उसे अल्लाह ने तुम पर चुन लिया (4) और उसे इल्म और जिस्म में कुसादगी ज़्यादा दी (5) और अल्लाह अपना मुल्क जिसे चाहे दे (6) और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है (7).
*तफ़सीर*
(1) तालूत, बिनयामीन बिन हज़रते याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद से हैं. आपका नाम क़द लम्बा होने की वजह से तालूत है. हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला की तरफ़ से एक लाठी मिली थी और बताया गया था कि जो व्यक्ति तुम्हारी क़ौम का बादशाह होगा उसका क़द इस लाठी के बराबर होगा. आपने उस लाठी से तालूल का क़द नाप कर फ़रमाया कि मैं तुम को अल्लाह के हुक्म से बनी इस्त्राईल का बादशाह मुक़र्रर करता हूँ और बनी इस्त्राईल से फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बना कर भेजा है. (ख़ाज़िन व जुमल)
(2) बनी इस्त्राईल के सरदारों ने अपने नबी हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से कहा कि नबुव्वत तो लावा बिन याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में चली आती है, और सल्तनत यहूद बिन याक़ूब की औलाद में, और तालूत इन दोनों ख़ानदानों में से नहीं है, तो बादशाह कैसे हो सकते है.
(3) वो ग़रीब व्यक्ति हैं. बादशाह को माल वाला होना चाहिये.
(4) यानी सल्तनत विरासत नहीं कि किसी नस्ल व ख़ानदान के साथ विशेष हो. यह केवल अल्लाह के करम पर है. इसमें शियों का रद है जिनका अक़ीदा है कि इमामत विरासत है.
(5) यानी नस्ल व दौलत पर सल्तनत का अधिकार नहीं. इल्म व क़ुव्वत सल्तनत के लिये बड़े मददगार हैं और तालूत उस ज़माने में सारे बनी इस्त्राईल में ज़्यादा इल्म रखते थे और सबसे ज़्यादा मज़बूत जिस्म वाले और ताक़तवर थे.
(6) इसमें विरासत को कुछ दख़्ल नहीं.
(7) जिसे चाहे ग़नी यानी मालदार कर दे और माल में विस्तार फ़रमा दे. इसके बाद बनी इस्त्राईल ने हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अगर अल्लाह ने उन्हें सल्तनत के लिये मुक़र्रर किया है तो इसकी निशानी क्या है. (ख़ाज़िन व मदारिक)
*___________________________________*
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑦_*
और उनसे उनके नबी ने फ़रमाया बेशक अल्लाह ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बनाकर भेज (1) बोले उसे हम पर बादशाही कयो कर होगी (2) और हम उससे ज़्यादा सल्तनत के मुस्तहिक़ है और उसे माल में भी वुसअत नहीं दी गई (3) फ़रमाया उसे अल्लाह ने तुम पर चुन लिया (4) और उसे इल्म और जिस्म में कुसादगी ज़्यादा दी (5) और अल्लाह अपना मुल्क जिसे चाहे दे (6) और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है (7).
*तफ़सीर*
(1) तालूत, बिनयामीन बिन हज़रते याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद से हैं. आपका नाम क़द लम्बा होने की वजह से तालूत है. हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला की तरफ़ से एक लाठी मिली थी और बताया गया था कि जो व्यक्ति तुम्हारी क़ौम का बादशाह होगा उसका क़द इस लाठी के बराबर होगा. आपने उस लाठी से तालूल का क़द नाप कर फ़रमाया कि मैं तुम को अल्लाह के हुक्म से बनी इस्त्राईल का बादशाह मुक़र्रर करता हूँ और बनी इस्त्राईल से फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बना कर भेजा है. (ख़ाज़िन व जुमल)
(2) बनी इस्त्राईल के सरदारों ने अपने नबी हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से कहा कि नबुव्वत तो लावा बिन याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में चली आती है, और सल्तनत यहूद बिन याक़ूब की औलाद में, और तालूत इन दोनों ख़ानदानों में से नहीं है, तो बादशाह कैसे हो सकते है.
(3) वो ग़रीब व्यक्ति हैं. बादशाह को माल वाला होना चाहिये.
(4) यानी सल्तनत विरासत नहीं कि किसी नस्ल व ख़ानदान के साथ विशेष हो. यह केवल अल्लाह के करम पर है. इसमें शियों का रद है जिनका अक़ीदा है कि इमामत विरासत है.
(5) यानी नस्ल व दौलत पर सल्तनत का अधिकार नहीं. इल्म व क़ुव्वत सल्तनत के लिये बड़े मददगार हैं और तालूत उस ज़माने में सारे बनी इस्त्राईल में ज़्यादा इल्म रखते थे और सबसे ज़्यादा मज़बूत जिस्म वाले और ताक़तवर थे.
(6) इसमें विरासत को कुछ दख़्ल नहीं.
(7) जिसे चाहे ग़नी यानी मालदार कर दे और माल में विस्तार फ़रमा दे. इसके बाद बनी इस्त्राईल ने हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अगर अल्लाह ने उन्हें सल्तनत के लिये मुक़र्रर किया है तो इसकी निशानी क्या है. (ख़ाज़िन व मदारिक)
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गर होजाए यक़ीन के.....
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