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Thursday 27 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #191
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑤_*
     अल्लाह है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं (2) वह आप ज़िन्दा, औरों का क़ायम रखने वाला (3) उसे न ऊंघ आए न नींद (4) उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में (5) वह कौन है जो उसके यहां सिफ़रिश करे बे उसके हुक्म के  (6) जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे (7) और वो नहीं पाते उसके इल्म में से मगर जितना वह चाहे (8)
उसकी कुर्सी में समाए हुए है आसमान और ज़मीन (9) और उसे भारी नहीं उनकी निगहबानी और वही है बलन्द बड़ाई वाला  (10)

*तफ़सीर*
     (2) इसमें अल्लाह तआला की उलूहियत और उसके एक होने का बयान है. इस आयत को आयतल कुर्सी कहते हैं. हदीसों में इसकी बहुत सी फ़ज़ीलत आई है.
     (3) यानी वाजिबुल वुजूद और आलम का ईजाद करने वाला और तदबीर फ़रमाने वाला.
     (4) क्योंकि यह दोष है और वह दोष और ऐब से पाक है.
     (5) इसमें उसकी मालिकियत और हुक्म के लागू करने की शक्ति का बयान है, और बहुत ही सुंदर अन्दाज़ में शिर्क का रद है कि जब सारी दुनिया उसकी मिल्क है तो शरीक कौन हो सकता है, मुश्रिक या तो सितारों को पूजते हैं जो आसमानों में हैं या दरियाओं, पहाड़ों, पत्थरों और दरख़्तों और जानवरों वग़ैरह को कि जो ज़मीन में हैं. जब आसमान और ज़मीन की हर चीज़ अल्लाह की मिल्क है तो ये कैसे पूजने के क़ाबिल हो सकते हैं.
     (6) इसमें मुश्रिकों का रद है जिनका गुमान था कि मुर्तियाँ सिफ़ारिश करेंगी. उन्हें बता दिया गया कि काफ़िरों के लिये सिफ़ारिश या शफ़ाअत नहीं. अल्लाह के दरबार से जिन्हें इसकी इजाज़त मिली है उनके सिवा कोई शफ़ाअत नहीं कर सकता और इजाज़त वाले नबी, फरिश्ते और ईमान वाले हैं.
     (7) यानी गुज़रे हुए या आगे आने वाले दुनिया और आख़िरत के काम.
     (8) और जिनको वह मुत्तला फ़रमाए, वो नबी और रसूल हैं जिनको ग़ैब पर सूचित फ़रमाना, उनकी नबुव्वत का प्रमाण है. दूसरी आयत में इरशाद फ़रमाया “ला युज़हिरो अला ग़ैबिही अहदन इल्ला मनिर तदा मिर रसूलिन” (यानी अपने ग़ैब पर किसी को मुत्तला नहीं करता सिवाय अपने पसन्दीदा रसूलों के. (72 : 26) (ख़ाज़िन).
     (9) इसमें उसकी शान की अज़मत का इज़हार है, और कुर्सी से या इल्म और क्षमता मुराद है या अर्श या वह जो अर्श के नीचे और सातों आसमानों के ऊपर है. और मुमकिन है कि यह वही हो जो “फ़लकुल बुरूज” के नाम से मशहूर है.
     (10) इस आयत में इलाहिय्यात के ऊंचे मसायल का बयान है और इससे साबित है कि अल्लाह तआला मौजूद है. अपने अल्लाह होने में एक है, हयात यानी ज़िन्दगी के साथ मुत्तसिफ़ है. वाजिबुल वुजूद, अपने मासिवा का मूजिद है. तग़ैय्युरो हुलूल से मुनज़्ज़ा और तबदीली व ख़राबी से पाक है, न किसी को उससे मुशाबिहत, न मख़लूक़ के अवारिज़ को उस तक रसाई, मुल्को मलकूत का मालिक, उसूलो फरअ का मुब्देअ, क़वी गिरफ़्त वाला, जिसके हुज़ूर सिवाए माज़ून के कोई शफ़ाअत नहीं कर सकता. सारी चीज़ों का जानने वाला, ज़ाहिर का भी और छुपी का भी, कुल का भी, और कुछ का भी. उसका मुल्क वसीअ और क़ुदरत लामेहदूद, समझ और सोच से ऊपर.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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