*अहकामे रोज़ा* #16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_आँख का रोज़ा_*
आँख का रोज़ा इस तरह रखना चाहिये की आँख जब भी उठे तो सिर्फ और सिर्फ जाइज़ उमूर ही की तरत उठे। आँख से मस्जिद देखिये, क़ुरआन देखिये, मज़ाराते औलिया की ज़ियारत कीजिये।
अल गरज़ कोई भी नाजाइज़ व हराम चीज़ देखने से बचे। और आँख का रोज़ तो 24 गंटे 30सो दिन और बारह महीने होना चाहिए।
*_कान का रोज़ा_*
कान का रोज़ा ये है की सिर्फ और सिर्फ जाइज़ बाते सुने। मसलन कानो से तिलावत व नात सुनिये, सुन्नतो भरे बयानात सुनिये।
*_ज़बान का रोज़ा_*
ज़बान का रोज़ा ये है की ज़बान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज़ बातो के लिये ही हरकत में आए। मसलन ज़बान से तिलावते क़ुरआन कीजिये, ज़िक्रो दुरिद का विर्द कीजिये। दर्स दीजिये सुन्नतो भरा बयान कीजिये, नेकी की दावत दीजिये। फ़ुज़ूल बकबक से बचते रहिये।
*_हाथ का रोज़ा_*
हाथो का रोज़ा ये है की जब भी उठे सिर्फ नेक कम के लिये उठे। मसलन क़ुरआन को हाथ लगाइये, नेक लोगो से मुसाफहा कीजिये, हो सके तो किसी यतीम के सर पर शफ़क़त से हाथ फेरिये की हाथ के निचे जितने बाल आएगे हर बाल के इवज़ एक नेकी मिलेगी।
*_पाँव का रोज़ा_*
पाँव का रोज़ा ये है की पाँव उठे तो सिर्फ नेक कामो के लिये उठे। मसलन पाँव चले तो मसाजिद की तरफ, मज़ारते औरलिया की तरफ, सुन्नतो भरे इज्तेमअ की तरफ, नेकी की दावत के लिये, किसी की मदद के लिये चले।
वाक़ई हक़ीक़ी मानो में रोज़े की बरकत तो उसी वक़्त नसीब होगी जब हम तमाम आज़ा का भी रोज़ा रखेंगे। वरना भूक और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल न होगा।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान*
*📮षवाब की निय्यत से शेर करे*
*___________________________________*
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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आँख का रोज़ा इस तरह रखना चाहिये की आँख जब भी उठे तो सिर्फ और सिर्फ जाइज़ उमूर ही की तरत उठे। आँख से मस्जिद देखिये, क़ुरआन देखिये, मज़ाराते औलिया की ज़ियारत कीजिये।
अल गरज़ कोई भी नाजाइज़ व हराम चीज़ देखने से बचे। और आँख का रोज़ तो 24 गंटे 30सो दिन और बारह महीने होना चाहिए।
*_कान का रोज़ा_*
कान का रोज़ा ये है की सिर्फ और सिर्फ जाइज़ बाते सुने। मसलन कानो से तिलावत व नात सुनिये, सुन्नतो भरे बयानात सुनिये।
*_ज़बान का रोज़ा_*
ज़बान का रोज़ा ये है की ज़बान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज़ बातो के लिये ही हरकत में आए। मसलन ज़बान से तिलावते क़ुरआन कीजिये, ज़िक्रो दुरिद का विर्द कीजिये। दर्स दीजिये सुन्नतो भरा बयान कीजिये, नेकी की दावत दीजिये। फ़ुज़ूल बकबक से बचते रहिये।
*_हाथ का रोज़ा_*
हाथो का रोज़ा ये है की जब भी उठे सिर्फ नेक कम के लिये उठे। मसलन क़ुरआन को हाथ लगाइये, नेक लोगो से मुसाफहा कीजिये, हो सके तो किसी यतीम के सर पर शफ़क़त से हाथ फेरिये की हाथ के निचे जितने बाल आएगे हर बाल के इवज़ एक नेकी मिलेगी।
*_पाँव का रोज़ा_*
पाँव का रोज़ा ये है की पाँव उठे तो सिर्फ नेक कामो के लिये उठे। मसलन पाँव चले तो मसाजिद की तरफ, मज़ारते औरलिया की तरफ, सुन्नतो भरे इज्तेमअ की तरफ, नेकी की दावत के लिये, किसी की मदद के लिये चले।
वाक़ई हक़ीक़ी मानो में रोज़े की बरकत तो उसी वक़्त नसीब होगी जब हम तमाम आज़ा का भी रोज़ा रखेंगे। वरना भूक और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल न होगा।
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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