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Friday 23 June 2017

*बन्दों के हुक़ूक़* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_बन्दों के हुक़ूक़ की अहम्मिय्यत_*
     बन्दों के हुक़ूक़ का मुआमला वाक़ई बहुत नाज़ुक है, हमें इस बारे में हर वक़्त मोहतात रहना चाहिये। अगर कभी दानिस्ता या ना दानिस्ता तौर पर किसी मुसलमान का हक़ तलफ हो जाए तो फौरन तौबा करते हुवे साहिब हक़ से मुआफ़ी भी मांगनी चाहिये। हुकुकुल्लाह सच्ची तौबा से मुआफ़ हो जाते है, जब की बन्दों के हुक़ूक़ में तौबा के साथ साथ जिस का हक़ मारा है, उस से भी मुआफ़ी मांगना ज़रूरी है।
     आला हज़रत, इमाम अहमद रज़ा खां رحمة الله عليه इर्शाद फ़रमाते है : हक़ किसी का भी हो, जब तक साहिबे हक़ मुआफ़ न करे, मुआफ़ नही होता, हुकुकुल्लाह में तो ज़ाहिर है की अल्लाह के सिवा दूसरा मुआफ़ करने वाला कौन हो सकता है ? की क़ुरआन में है _और गुनाह कौन बख्शे सिवा अल्लाह के_ और बन्दों के हुक़ूक़ में रब तआला ने येही ज़ाबिता मुक़र्रर फरमा रखा है की जब तक वो बन्दा मुआफ़ न करे, मुआफ़ न होगा।
     अगर्चे मौला तआला हमारा और हमारे जानो माल व हुक़ूक़ सब का मालिक है, अगर वो बे हमारी मर्ज़ी के, हमारे हुक़ूक़ जिसे चाहे मुआफ़ फरमा दे, तो भी ऐन हक़ और अदल है की हम भी उसी के और हमारे हुक़ूक़ भी उसी के मुक़र्रर फरमाए हुवे है, अगर वो हमारे खून, माल और इज़्ज़त वगैरा को मासूम व मोहतरम न करता तो हमे कोई कैसा ही आज़ार (तकलीफ) पहुचाता, कभी हमारे हक़ में गिरफ्तार न होता।
     युही अब भी अल्लाह जिसे चाहे, हमारे हुक़ुक़ मुआफ़ फरमा दे क्युकी वही मालिके हक़ीक़ी है, मगर उस करीम, रहीम की रहमत है की हमारे हुक़ुक़ का इख़्तियार हमारे हाथ में रखा है, बे हमारे बख्शे मुआफ़ हो जाने की शक्ल न रखी, ताकि कोई मज़लूम ये न कहे की ऐ मेरे मालिक ! मुझे मेरा हक़ न मिला।
*✍🏼फतवा रज़विय्या 24/460*
*✍🏼बन्दों के हुक़ूक़, 8*

*तमाम मोमिनो के इसले षवाब के लिये*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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