*83 आसान नेकियां* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #02
*ज़िक्र की अक़्साम*
अकषर येही ख्याल किया जाता है की ज़बान से अल्हम्दुलिल्लाह, सुब्हानअल्लाह वगैरा अदा करने का नाम ही ज़िक्र है, इस में कोई शक नही की ये भी ज़िक्र है मगर कलामें अरब में ज़िक्र का लफ्ज़ बहुत से मानी में इस्तिमाल होता है। चुनान्चे सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते मौलाना मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी عليه رحما सूरए बक़रह की आयत 152 के तहत तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में लिखते है : ज़िक्र 3 तरह का होता है :
(1) लिसानी (यानी ज़बान से)
ज़िक्रे लिसानी तस्बीह, तक़दिस, षना वगैरा बयान करना है, ख़ुत्बा, तौबा, इस्तिग़फ़ार, दुआ वगैरा इस में दाखिल है।
(2) क़ल्बी (यानी दिल से)
ज़िक्रे क़ल्बी अल्लाह की नेमतों का याद करना उस की अज़मत व किब्रियाइ और उस के दलाइले क़ुदरत में गौर करना, उलमा का इस्तिम्बाते मसाइल में गौर करना भी इस में दाखिल है।
(3) बिल जवारिह (यानी आज़ाए जिस्म से)
ज़िक्रे बिल जवारिह ये है की आज़ा ताअते इलाही में मश्गुल हो जैसे हज के लिये सफर करना ये ज़िक्र बिल जवारिह में दाखिल है। नमाज़ तीनो किस्म के ज़िक्र पर मुश्तमिल है। तस्बीह व तकबीर, षना व किरआत तो ज़िक्रे लिसानी है और खुशुअ व ख़ुज़ूअ, इखलास ज़िक्रे क़ल्बी और क़याम, रूकू व सुजूद वगैरा ज़िक्रे बिल जवारिह है।
*✍🏼आसान नेकियां, 23*
*___________________________________*
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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अकषर येही ख्याल किया जाता है की ज़बान से अल्हम्दुलिल्लाह, सुब्हानअल्लाह वगैरा अदा करने का नाम ही ज़िक्र है, इस में कोई शक नही की ये भी ज़िक्र है मगर कलामें अरब में ज़िक्र का लफ्ज़ बहुत से मानी में इस्तिमाल होता है। चुनान्चे सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते मौलाना मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी عليه رحما सूरए बक़रह की आयत 152 के तहत तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में लिखते है : ज़िक्र 3 तरह का होता है :
(1) लिसानी (यानी ज़बान से)
ज़िक्रे लिसानी तस्बीह, तक़दिस, षना वगैरा बयान करना है, ख़ुत्बा, तौबा, इस्तिग़फ़ार, दुआ वगैरा इस में दाखिल है।
(2) क़ल्बी (यानी दिल से)
ज़िक्रे क़ल्बी अल्लाह की नेमतों का याद करना उस की अज़मत व किब्रियाइ और उस के दलाइले क़ुदरत में गौर करना, उलमा का इस्तिम्बाते मसाइल में गौर करना भी इस में दाखिल है।
(3) बिल जवारिह (यानी आज़ाए जिस्म से)
ज़िक्रे बिल जवारिह ये है की आज़ा ताअते इलाही में मश्गुल हो जैसे हज के लिये सफर करना ये ज़िक्र बिल जवारिह में दाखिल है। नमाज़ तीनो किस्म के ज़िक्र पर मुश्तमिल है। तस्बीह व तकबीर, षना व किरआत तो ज़िक्रे लिसानी है और खुशुअ व ख़ुज़ूअ, इखलास ज़िक्रे क़ल्बी और क़याम, रूकू व सुजूद वगैरा ज़िक्रे बिल जवारिह है।
*✍🏼आसान नेकियां, 23*
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