*83 आसान नेकियां* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #03
*_मुझ पर रहमत की नज़र रखना_*
एक बार हज़रते अबू फर्वा رضي الله عنه एक मिल तक सफर कर गए मगर इस दौरान ज़िकरुल्लाह न कर पाए, लिहाज़ा वापस आए और वो मसाफत ज़िकरुल्लाह करते हुवे दोबारा तै की। जब तै कर चुके तो अर्ज़ की : या इलाही ! अबू फर्वा पर रहमत की नज़र रखना क्यू की ये तुझे नही भूलता।
*_मेरी गवाही दे_*
हज़रते अबुल मलीह رحمة الله عليه जब अल्लाह का ज़िक्र करते तो (ख़ुशी से) झूम जाते और फ़रमाते : मेरा ये झूमना अल्लाह के ज़िक्र की वजह से है क्यू की अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया है : فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152, और जब आप किसी रास्ते पर चलते और अल्लाह का ज़िक्र करना भूल जाते तो वापस आ कर फिर उसी रास्ते पर चलते और उसमे अल्लाह का ज़िक्र करते अगर्चे एक दिन का सफर हो, और फ़रमाते में इस बात को पसन्द करता हु की में जिस ज़मीन से गुजरूं वो तमाम ज़मीन क़यामत के दिन मेरे ज़िकरुल्लाह की गवाही दे।
मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! ये अल्लाह का हम पर अज़ीम एहसान है की उस का ज़िक्र हम हर जगह कर सकते है। इस के लिये कोई ख़ास मक़ाम और वक़्त मुक़र्रर नही फ़रमाया। जहा जाए, जिधर जाए, अल्लाह अल्लाह कर सकते है, जैसा की हज़रते हसन बसरी عليه رحما फ़रमाते है : अल्लाह ने अपने फरमाने अज़ीम فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152, से हम पर आसानी कर दी है और अपने ज़िक्र के लिये कोई जगह मख़्सूस नही फ़रमाई अगर अल्लाह हमारे लिये ज़िक्र करने की कोई जगह मख़्सूस फरमा देता तो हमारा वहा जाना वाजिब हो जाता ख्वाह वो मक़ाम एक सदी की मुसाफत पर ही क्यू न होता जैसा की हज के लिये लोगो को काबा में बुलाया है।
*✍🏼आसान नेकियां, 25*
*___________________________________*
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #03
*_मुझ पर रहमत की नज़र रखना_*
एक बार हज़रते अबू फर्वा رضي الله عنه एक मिल तक सफर कर गए मगर इस दौरान ज़िकरुल्लाह न कर पाए, लिहाज़ा वापस आए और वो मसाफत ज़िकरुल्लाह करते हुवे दोबारा तै की। जब तै कर चुके तो अर्ज़ की : या इलाही ! अबू फर्वा पर रहमत की नज़र रखना क्यू की ये तुझे नही भूलता।
*_मेरी गवाही दे_*
हज़रते अबुल मलीह رحمة الله عليه जब अल्लाह का ज़िक्र करते तो (ख़ुशी से) झूम जाते और फ़रमाते : मेरा ये झूमना अल्लाह के ज़िक्र की वजह से है क्यू की अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया है : فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152, और जब आप किसी रास्ते पर चलते और अल्लाह का ज़िक्र करना भूल जाते तो वापस आ कर फिर उसी रास्ते पर चलते और उसमे अल्लाह का ज़िक्र करते अगर्चे एक दिन का सफर हो, और फ़रमाते में इस बात को पसन्द करता हु की में जिस ज़मीन से गुजरूं वो तमाम ज़मीन क़यामत के दिन मेरे ज़िकरुल्लाह की गवाही दे।
मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! ये अल्लाह का हम पर अज़ीम एहसान है की उस का ज़िक्र हम हर जगह कर सकते है। इस के लिये कोई ख़ास मक़ाम और वक़्त मुक़र्रर नही फ़रमाया। जहा जाए, जिधर जाए, अल्लाह अल्लाह कर सकते है, जैसा की हज़रते हसन बसरी عليه رحما फ़रमाते है : अल्लाह ने अपने फरमाने अज़ीम فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152, से हम पर आसानी कर दी है और अपने ज़िक्र के लिये कोई जगह मख़्सूस नही फ़रमाई अगर अल्लाह हमारे लिये ज़िक्र करने की कोई जगह मख़्सूस फरमा देता तो हमारा वहा जाना वाजिब हो जाता ख्वाह वो मक़ाम एक सदी की मुसाफत पर ही क्यू न होता जैसा की हज के लिये लोगो को काबा में बुलाया है।
*✍🏼आसान नेकियां, 25*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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