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Thursday 14 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुसैनी दिन यानी 10 मुहर्रम. मुहर्रम में कुछ लोग इमाम हुसैन के किरदार को भूल गये और इस दिन को खेल तमाशो, गैर शरई रस्मो नाचगाना, मेले और गुमने फिरने का दिन बना दिया। और ऐसा लगने लगा की जेसे इस्लाम मजहब भी दूसरे मजहबो की तरह खेल तमाशो, गुमने फिरने और रंग रलिया वाला मजहब है।

     मुसलमान कहलाने वालो में सिर्फ एक फिरका जिसको राफजी यानी शिया कहते है उनके वहा नमाज़, रोज़ा वगैरा शरीअत के हुक्मो का और दीनदारी के मुआमले में कोई अहमियत देने में नहीं आता। बस मुहर्रम आते ही रोना, पीटना, चिल्लाना यही उनका मज़हब है। जाने की अल्लाह ने उसके रसूल को यही सब करने और सिखाने भेजा था और यही सब बेतुकी बातो का नाम इस्लाम है।

     जबकी हदीसे पाक में है : हुज़ूर ﷺ फरमाते है जो कोई गममे गाल पिटे, गला फाडे, जाहिलियत के ज़माने जैसा चिल्लाये वो हम में से नहीं है।
*✍🏼मिश्कात शरीफ, स. 150*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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