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Monday 30 October 2017

*गुनाहे कबीरा नंबर 34*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_खियानत करना_*
     किसी का हक़ मारना खियानत कहलाता है। ख्वाह अपना हक़ मारे या अल्लाह व रसूल का या इस्लाम का या किसी बन्दे का।
     अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :
_ऐ ईमान वालो अल्लाह व रसूल से दगा न करो और न अपनी अमानतों में दानिस्ता खियानत।_
*✍🏼الانفال ٢٧*
_और अल्लाह दगाबाज़ो का मक्र नहीं चलने देता।_
*✍🏼يوسف ٥٢*
_और अगर तुम किसी क़ौम से दगा का अन्देशा करो तो उन का अहद उन की तरफ फेक दो बराबरी पर बेशक दगा (अहद शिकन) वाले अल्लाह को पसन्द नहीं।_
*✍🏼الانفال ٥٨*
*_खियानत के मुतअल्लिक़ फरमाने मुस्तफा_*
     जिस को अमानत का पास नहीं उस का कोई ईमान नहीं और जिसे अहद का लिहाज़ नहीं उस का कोई दीन नहीं।
*✍🏼ابن حبان*
     मुनाफ़िक़ की तीन निशानियां है : (1) जब बात करे तो झूट बोले (2) जब वादा करे तो पूरा न करे (3) जब उस के पास अमानत रखवाई जाए तो खियानत करे।
*✍🏼مسلم*
     खियानत जिस शै के बारे में भी की जाए बुरी है और बाज़ खियानतें बाज़ के मुकाबले में ज़्यादा बुरी होती है। जो शख्स रुपे पैसे के मुआमले में खियानत करे वो उस शख्स की तरह नहीं जो किसी के अहलो इयाल के बारे में खियानत और कई बड़े गुनाहों का इर्तिकाब करे।
*✍🏼76 कबीरा गुनाह* 123

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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