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Thursday 8 March 2018

*वाकिआए में'राज* #15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*ला मकां की वही*
     वो वही क्या थी जो रब तआला ने इस क़ुर्बे ख़ास में बन्दए ख़ास की तरफ फ़रमाई और क्या राज़ नियाज़ हुवे।
     बुखारी की हदीस में इसे इन अलफ़ाज़ में बयान किया गया है: रब ने अपने बन्दे की तरफ जो वही की वो की।
     अक्सर मुहक़्क़ीक़ीन फ़रमाते है कि उस वही का मज़्मून किसी को मालुम नहीं कि मुहिब्ब और महबूब के असरार दूसरों पर ज़ाहिर नहीं किये जाते, अगर खुदा को इन का इज़हार मक़सूद होता खुद ही बयान फरमा देता जब उस ने बयान नहीं किया कि फ़रमाया: वही की अपने बन्दे की तरफ जो वही की। तो किसी की मजाल है कि दरयाफ़्त करे?
     बहर हाल मुख़्तसर तौर पर इतना कहा जा सकता है कि दीनो दुन्या की जिस्मानी व रूहानी, ज़ाहिरी व बातिनी नेअमतों और उलूमो मआरिफ़ जो कुछ भी अल्लाह अपने हबीब ﷺ को अपनी हिकमत के मुताबिक़ अता फरमाना चाहता था वो सब कुछ अता फरमा दिया अलबत्ता हर नेअमत और हर इल्म व हिकमत का ज़ुहूर् अपने अपने वक़्त पर हुवा और होता रहेगा।
*✍🏼फ़ैज़ाने मेराज* 36
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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