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Thursday 22 March 2018

*वाक़ीअए में'राज से माख़ज़ मदनी फूल* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी رحمة الله عليه फ़रमाते है: हुज़ूर ﷺ का बुराक़ पर सुवार होना इज़हारे शान के लिये था जैसे दुल्हन घोड़े पर होते है बाराती पैदल और घोड़ा खिरामां खिरामां चलता है। बुराक़ की ये रफ़्तार भी खिरामां थी वरना उस दिन खुद हुज़ूर ﷺ की अपनी रफ़्तार बुराक़ से ज़्यादा तेज़ होती।
     देखो! हज़राते अम्बियाए किराम ने बैतूल मुक़द्दस में हुज़ूर ﷺ के पीछे नमाज़ पढ़ी और हुज़ूर ﷺ को विदा किया मगर आसमानों पर हुज़ूर ﷺ से पहले पहुंच गए और हुज़ूर ﷺ का इस्तक़बाल किया, क्योंकि आज इन हज़रात की कारकर्दगी का दिन था हुज़ूर ﷺ के दूल्हा बनने का दिन था, ये है नबी की रफ़्तार।
     वाक़ीअए मेराज से ये बात भी पता चलती है कि रहमते आलम ﷺ को बारगाहे इलाही में ऐसी बारयाबी हासिल है कि बार बार हाज़िर हो सकते है कि हज़रते मूसा عليه السلام की नमाज़ों में कमी के सिलसिले में अर्ज़ व मारुज़ सुन कर वहीं से दुआ न कर दी बल्कि बार बार हज़रते मूसा عليه السلام और रब के दर्मियान आते जाते रहे।
     इससे नमाज़ों की अज़मत का भी पता चला कि ये अल्लाह ने अपने महबूब को सातों आसमानों बल्कि अर्श व कुरसी से भी वराअ ला मकां में बुला कर अता फ़रमाई है।
*✍🏼फ़ैज़ाने मेराज* 54
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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