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Thursday 8 March 2018

*ताज़िमे इरशादे रसूल ﷺ* 
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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
    हज़रते अस्मा रदिअल्लाहो तआला अन्हा बड़ी सखी थी। अव्वल जो कुछ खर्च करती थी अंदाजे से नाप तोल कर खर्च करती थी मगर जब हुजूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि बांध कर न रखा करो और हिसाब न लगया करो जितना भी कुदरत में हो ख़र्च किया करो तो फिर खूब ख़र्च करने लगीं।
      अपनी बेटियों और घर की औरतों को नसीहत किया करती थी कि अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करने और सदक़ा करने में ज़रूरत से ज़ियादा होने और बचने का इन्तिज़ार न किया करो कि अगर ज़रूरत से ज़ियादती का इन्तिज़ार करती रहोगी तो होने का ही नहीं (कि ज़रूरत खुद बढ़ती रहती है) और अगर सदक़ा करती रहोगी तो सदक़े में ख़र्च कर देने से नुक्सान में न रहोगी।
  बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 63
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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