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Thursday 10 May 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #137
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*खाना काबा की तारीख* #04

*हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर की तामीर*
     हज़रत आइशा सिद्दिक़ा رضي الله عنها फरमाती है: एक मर्तबा रसूलल्लाह ﷺ ने काबा के मुत्तसिल (हतीम) बुन्यादे इब्राहिम के पथ्थर मुझे दिखाए और फ़रमाया कि क़ुरैश ने इसमें कमी कर दी थी लोग अगर नये नये मुसलमान न होते और उनके जज़्बात भड़कने का अन्देशा न होता तो में इब्राहीमी बुन्यादो पर काबा दोबारा तामीर कर देता।
     इस रिवायत की बुन्याद पर हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله عنه ने काबा शरीफ को मुंहदिम करके दोबारा तामीर किया, हतीम को काबा में दाखिल किया, दरवाज़े दो बनाए जो ज़मीन के मुत्तसिल थे खुश्बुदार मिटटी चुना में मिलाकर लगाया गया दरवाज़ों पर अंदर बाहर अम्बर लगाकर खुशबूदार किया गया। निहायत क़ीमती रेशमी गिलाफ चढ़ाया गया।
     ख्याल रहे की सबसे पहले काबा शरीफ को गिलाफ चढ़ाने वाले का नाम असद है जो शाह यमन था तबअ के लक़ब से मश्हूर था मदीना की शहरी बुन्याद रखने वाला यह शख्स था।
     अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله عنه की तामीर 27 रजब 64 हि. को मुकम्मल हुई फिर हज्जाज बिन यूसफ (जो अब्दुल मालिक बिन मरवान का नाइबे था) ने 74 हि. में इमारत को मुंहदिम करके फिर उसी तरह बना दिया जेसे क़ुरैश ने बनाया था।
     फिर हारून रशिद ने चाहा की काबा उस तरह बना दिया जाये जेसे अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله عنه ने तामीर किया था, यानी दर अस्ल वही इब्राहिमी तामीर भी थी लेकिन उस वक़्त के अहले इल्म ने इसलिये मना किया की कोई तुम्हारा मुखालिफ आयेगा वह फिर तब्दील करेगा इस तरह गिराना और बनाना एक खेल बन जायेगा।
     इसके बाद मरम्मत तो होती रही लेकिन मुकम्मल तौर पर पूरी इमारत को दोबारा नहीं बनाया गया।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 111
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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