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Wednesday 9 May 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #136
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*खाना काबा की तारीख* #03

*इब्राहिम عليه السلام की तामीर के बाद*
     आप की तामीर के बाद जुज़्वी तौर पर मुख़्तलिफ़ औक़ात में तामीर हुई। एक मर्तबा अमालका और जरहम ने इसे तामीर किया इसके बाद कुसई बिन कलाब ने इसकी तामीर की जिसमें छत दरख्त मकल की लकड़ी की बनाई जिस पर बजाए तख्तों के ख़ुरमे की लकड़ी डाली।

*क़ुरैश की तामीर*
     एक औरत काबा शरीफ में खुशबु सुलगाती थी, एक बार अचानक उससे शोला उठा और छत जल गई और दीवारें पहले ही बोसीदा हो चुकी थी, इसलिये क़ुरैश ने फैसला किया की मुकम्मल तौर पर नई तामीर की जाये। वलीद बिन मुगिरा को इमारत का अमीर मुक़र्रर किया गया और यह तै हुआ की इसमें हलाल माल खर्च होगा उस वक़्त के अमीर लोगों के पास ज़्यादा सूद से हासिल कर्दा माल होता था इसलिये हलाल माल कम मिक़दार में जमा हुआ तो कुरैश ने माल की कमी और कुछ आपने मक़ासिद के पेशे नज़र चन्द फर्क कर दिया।
     (1) काबा की कुछ ज़मीन बहार निकल दी यानी इमारत को छोटा कर दिया, काबा से बहार निकाली हुई ज़मीन को हतीम कहा जाता है इसीमे मिज़ाबे रहमत (परनाला) गिरता है, छोटी छोटी दिवार से आज भी इसे अलग नुमायाँ किया हुआ है तवाफ़ इसके बाहर से ही होता है।
     (2) क़ुरैश ने दो दरवाज़े की बजाए एक कर डियावः भी बुलन्द ताकि जिसे चाहे अंदर जाने दे और जिसे चाहे न जाने दे अब भी इसी पर अमल हो रहा है, बादशाहो के लिये दरवाज़ा खुलता है ख्वाह वह कितने ही बदकार क्यूं न हो, सुलहा व अतकिया के लिये कभी दरवाज़ा खुलने की खबर नहीं सुनी गई।
     (3) खाना काबा के अंदर लकड़ी के सतूनों की दो सफे बनाई गई और हर सफ में तीन सतून बनाए गये।
     (4) काबा शरीफ की बुलन्दी पहले से दुगनी कर दी गई, पहले बुलन्दी 9 हाथ थी उन्होंने 18 हाथ कर दी।
     (5) खाना काबा के अंदर रुक्न शामी के क़रीब एक ज़ीना बनाया गया जिससे छत पर चढ़ सकें।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 110
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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