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Thursday 19 July 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①③*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
     और जब उनसे कहा जाए ईमान लाऔ जैसे और लोग ईमान लाए हैं(6) तो कहें क्या हम मूर्खों की तरह ईमान लाएं(7) सुनता है । वही मूर्ख हैं मगर जानते नहीं (8)

*तफ़सीर*
     6. यहां  “अन्नासो” से या सहाबए किराम  मुराद है या ईमान वाले, क्योंकि ख़ुदा के पहचानने, उसकी फ़रमाबरदारी और आगे की चिन्ता रखने की बदौलत वही इन्सान कहलाने के हक़दार हैं. “आमिनु कमा आमना” (ईमान लाओ जैसे और लोग ईमान लाए) से साबित हुआ कि अच्छे लोगों का इत्तिबाअ (अनुकरण) अच्छा और पसन्दीदा है. यह भी साबित हुआ कि एहले सुन्नत का मज़हब सच्चा है क्योंकि इसमें अच्छे नेक लोगों का अनुकरण है. बाक़ी सारे समुदाय अच्छे लोगों से मुंह फेरे हैं इसलिये गुमराह हैं. कुछ विद्वानों ने इस आयत को जि़न्दीक़ (अधर्मी) की तौबह क़ुबूल होने की दलील क़रार दिया है. (बैज़ावी) ज़िन्दीक़ वह है जो नबुवत को माने, इस्लामी उसूलों को ज़ाहिर करे मगर दिल ही दिल में ऐसे अक़ीदे रखे जो आम राय में कुफ़्र हों, यह भी मुनाफ़िकों में दाखि़ल हैं.
     7. इससे मालूम हुआ कि अच्छे नेक आदमियों को बुरा कहना अधर्मियों और असत्य को मानने वालों का पुराना तरीक़ा है. आजकल के बातिल फ़िर्के भी पिछले बुज़ुर्गों को बुरा कहते हैं. राफ़ज़ी समुदाय वाले ख़ुलफ़ाए राशिदीन और बहुत से सहाबा को, ख़ारिजी समुदाय वाले हज़रत अली और उनके साथियों को, ग़ैर मुक़ल्लिद अइम्मए मुज्तहिदीन (चार इमामों) विशेषकर इमामे अअज़म अबू हनीफ़ा को, वहाबी समुदाय के लोग अक्सर औलिया और अल्लाह के प्यारों को, मिर्जाई समुदाय के लोग पहले नबियों तक को, चकड़ालवी समुदाय के लोग सहाबा और मुहद्दिसीन को, नेचरी तमाम बुज़ुर्गाने दीन को बुरा कहते है और उनकी शान में गुस्ताख़ी करते हैं. इस आयत से मालूम हुआ कि ये सब सच्ची सीधी राह से हटे हुए हैं. इसमें दीनदार आलिमों के लिये तसल्ली है कि वो गुमराहों की बदज़बानियों से बहुत दुखी न हों, समझ लें कि ये अधर्मियों का पुराना तरीक़ा है. (मदारिक)
     8. मुनाफ़िक़ो की ये बद _ ज़बानी मुसलमानों के सामने न थी. उनसे तो वो यही कहते थे कि हम सच्चे दिल से ईमान लाए है जैसा कि अगली आयत में है “इज़ा लक़ुल्लज़ीना आमनू क़ालू आमन्ना”(और जब इमान वालों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए).ये तबर्राबाज़ियां (बुरा भला कहना) अपनी ख़ास मज्लिसों में करते थे. अल्लाह तआला ने उनका पर्दा खोल दिया. (ख़ाजिन)  उसी तरह आजकल के गुमराह फ़िर्कें (समुदाय) मुसलमानों से अपने झूटे ख्यालों को छुपाते हैं मगर अल्लाह तआला उनकी किताबों और उनकी लिखाईयों से उनके राज़ खोल देता है. इस आयत से मुसलमानों को ख़बरदार किया जाता है कि अधर्मियों की धोख़े बाज़ियों से होशियार रहें, उनके जाल में न आएं.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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