بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_ताजिया के बारे में गलत फहमी_* #02
कुछ लोग कहते है ताजियादारी और ढोल तमासे और मातम करते हुए गुमने से इस्लाम और मुसलमान की शान जाहिर होती है। लेकिन ये फ़ुज़ूल बात है।
पाँच वक़्त की अज़ान और महोल्ला, बस्ती और सभी मुसलमानो का मस्जिद में नमाज़े बा-जमाअत से ज्यादा मुसलमानो की शान बढ़ा ने वाली कोई चीज नहीं।
ताजियादारी व उसके साथ ढोल तमासे और नाचना, कूदना और मातम मनाना और बुज़ुर्गोके नाम पर गैर शरई उर्स, मेला और आजकी कव्वालियों की महफिले देख के गैर मुस्लिम ऐसा समजते है के ये भी हमारे मज़हब के जैसा तमाशेवाला मज़हब है।
और नमाज़, रोज़ा, ईमानदारी और सच्चाई, शरीअतके हुक्मो की पाबन्दी और दीनदारी देख के गैर मुस्लिम ऐसा कहते है की "अगर मज़हब कोई है तो वो इस्लाम ही है"
कोई मज़बूरी की वजह से वो मुसलमान नहीं बनते पर उनका दिल मुसलमान बनने को तड़पता है। और कितने तो मुसलमान हो भी जाते है, और होते रहते है।
ज़रा सोचे 1400 साल में मुसलमान की तादाद कितनी हो चुकी है।
ये सब नमाज़, रोज़े, इस्लाम की सीधी सच्ची बाते देख के बने है, ना की ताजियादारी, मेले तमासे देख के बनते है।
और ताजियादारी इस्लाम की शान नहीं बल्कि बदनामी है। आज वहाबी के उलमा यही सब दिखाके सुन्नियो को वहाबी बनाते है। यानी वो हमारे ये गैर मज़हबी रश्मो रिवाज़ दिखा के वहाबी बनाते है।
मुसलमान का अक़ीदा और ईमान इतना मजबूत होना चाहिए की दुनियाइ नफ़ा हो या नुकशान पर हम तो वही करेंगे जिससे अल्लाह और रसूल राज़ी होते है।
*✍️मुहर्रम में क्या जाइज़, क्या नाजायज़*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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