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Tuesday 25 September 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-11, आयत, ⑨ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

किस बुरे मोलों उन्होंने अपनी जानों को ख़रीदा कि अल्लाह के उतारे से इन्कार करें (12) इस जलन से कि अल्लाह अपनी कृपा से अपने जिस बन्दे पर चाहे वही (देव वाणी) उतारे (13) तो ग़ज़ब पर ग़ज़ब (प्रकोप) के सज़ावार (अधिकारी) हुए (14) और काफ़िरों के लिये ज़िल्लत का अज़ाब है (15)


*तफ़सीर*

     (12) यानी आदमी को अपनी जान बचाने के लिए वही करना चाहिये जिससे छुटकारे की उम्मीद हो. यहूद ने बुरा सौदा किया कि अल्लाह के नबी और उसकी किताब के इन्कारी हो गए.

     (13) यहूदियों के ख़्वाहिश थी कि आख़िरी नबी का पद बनी इस्राइल में से किसी को मिलता. जब देखा कि वो मेहरूम रहे और इस्माईल की औलाद को श्रेय मिला तो हसद के मारे इन्कार कर बैठे. इस से मालूम हुआ कि हसद हराम और मेहरूमी का कारण है.

     (14) यानी तरह तरह के ग़जब और यातनाओं के हक़दार हुए.

     (15) इससे मालूम हुआ कि ज़िल्लत और रूस्वाई वाला अज़ाब काफ़िरो के साथ ख़ास है. ईमान वालों को गुनाहों की वजह से अज़ाब हुआ भी तो ज़िल्लत और रूस्वाई के साथ न होगा. अल्लाह तआला ने फ़रमाया :“व लिल्लाहिल इज़्ज़तु व लिरसूलिही व लिलमूमिनीना” यानी और इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों ही के लिये है मगर मुनाफ़िक़ों को ख़बर नहीं. (सूरए मुनाफ़िक़ों, आयत 8)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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