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Sunday 2 September 2018

*सवानहे कर्बला​* #19


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_शहादत के वाक़ीआत_*


*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #03

     ये मुहर्रम सी. 61 ही. की दूसरी तारीख थी। आपرضي الله تعالي عنه ने इस मक़ाम का नाम दरयाफ़्त किया तो मालुम हुवा की इस जगह को कर्बला कहते है। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه कर्बला से वाकिफ थे और आप को मालुम था की कर्बला ही वो जगह है जहा अहले बैते रिसालत को राहे हक़ में अपने खून की नदिया बहानी होगी।

     आप ने इन्ही दिनों में हुज़ूरﷺ की ज़ियारत हुई, हुज़ूरﷺ ने आप को शहादत की खबर दी और आप के सिनए मुबारक पर दस्ते अक़दस रख कर दुआ फ़रमाई :

اَللّٰهُمَّ اَعْطِ الْحُسَيْنَ صَبْرًا وَاَخْرًا

     आज़िब वक़्त है के सुल्ताने दारैन के नुरे नज़र को सदहा तमन्नाओ से मेहमान बना कर बुलाया है, अर्जियों और दरख्वास्तो के तुमार लगा दिए है, क़ासिदो और पयामो की रोज़ मर्रा डाक लग गई है। अहले कूफा रातो को अपने मकानों में इमाम की तशरीफ़ आवरी ख्वाब में देखते है और ख़ुशी से फुले नही समाते, जमाअते मुद्दतो रक सुब्ह से शाम तक हिजाज़ की सड़क पर बैठ कर इमाम की आमद का इन्तिज़ार किया करती है और शाम को दिल मगमुम वापस जाती है लेकिन जब वो करीम मेहमान अपने करम से इन की ज़मीन में तशरीफ़ लाते है तो इन ही कुफियो का मुसल्लह लश्कर सामने आता है और न शहर में दाखिल होने देता है न अपने वतन ही को वापस तशरीफ़ ले जाने पर राज़ी होता है।

     यहाँ तक की इस मोअज़्ज़ज़् मेहमान को व अपने अहले बैत  को खुले मैदान में रखते इक़ामत डालना पड़ता है और दुष्मनाने हया को गैरत नही आती। दुन्या में ऐसे मोअज़्ज़ज़् मेहमान के साथ ऐसी बे हमिय्यति का सुलूक कभी न हुवा होगा जो कुफियो ने हज़रते इमाम के साथ किया।


बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله

*✍🏽सवानहे कर्बला, 131*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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