بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*लोहे का दाऊद عليه السلام के हाथ मे नर्म हो जाना*
दाऊद عليه السلام के हाथ मे लोहा मोम और गुंधे हुए आटे की तरह नर्म हो जाता था। आग में नर्म करने और हथौड़े से कूटने की ज़रूरत पेश नहीं आती थी आप जैसा चाहते उसी तरह लोहे को हाथ से इधर उधर फेर कर ज़िरह बना लेते थे। अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ आप बहुत खूबसूरत और मुअतदिल ज़िरह बनाते, न बहुत बड़ी और न बहुत छोटी। इसमें कील भी एक खास मिक़दार की लगाते। ताहम बाज़ मुफ़स्सिरिन ने कहा आपको कील लगाने की ज़रूरत ही दरपेश नहीं आती, लोहा नर्म हो जाता जैसे चाहते आप उसको उसी तरह फेर लेते।
हज़रत मक़ातिल से मरवी है कि आप عليه السلام जब से बनी इस्राइल ले बादशाह बने तो आपने ये अमल शुरू किया कि रात को आम आदमी की हैसियत से बाहर तशरीफ़ ले जाते, जो शख्स मिलता उससे पूछते दाऊद बादशाह कैसा है? एक मर्तबा आपकी मुलाक़ात एक फ़रिश्ते से हुई जो इंसानी शक्ल में था जब आपने उससे सवाल किया तो उसने कहा: आदमी तो बहुत अच्छा है सिर्फ एक बात उसमें न पाई जाये तो वो बहुत ही कामिल इंसान है, आपने पूछा वो कौन सी बात है? उसने कहा कि बैतूल माल से रिज़्क़ खाते है अपने हाथ की कमाई से खाएं तो उनके फ़ज़ाइल में तकमील पाई जाये।
आप عليه السلام ने अल्लाह से दुआ की ए अल्लाह! मुझे ज़िरह बनाने का इल्म अता फरमा दे और मुझपर ज़िरह बनानी आसान फरमा दे। अल्लाह ने आपको ज़िरह बनाने का इल्म अता फरमा दिया और लोहे को आपके हाथ मे नरम फ़रमा दिया। आप उसकी आमदनी का तिहाई हिस्सा मुसलमानों की मसलेहत में खर्च फरमाते। एक ज़िरह हर रोज़ तैयार फरमाते थे 1000, 4000 और 6000 दिरहम तक आपकी बनाई हुई ज़िरहें फरोख्त हुई। उसकी आमदनी में से आप अपनी ज़ात व अपने अहल व अयाल पर खर्च करते। फुक़रा और मिस्कीन को भी इसी माल से देते। 360 ज़िरहें आपने तैयार फ़रमाई थी उनको फरोख्त करके आपने इतने दिरहम हासिल कर लिये थे कि आप बैतूल माल के मोहताज न रहे बल्कि इससे कसीर रक़म गुरबा को भी दी।
*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 208
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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