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Saturday 15 September 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-9, आयत, ⑦⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

क्या नहीं जानते कि अल्लाह जानता है जो कुछ वो छुपाते हैं और जो कुछ वो ज़ाहिर करते हैं.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-9, आयत, ⑦⑧*

     और  उनमें  कुछ  अनपढ़  हैं  कि जो  किताब (7) को नहीं  जानते मगर ज़बानी पढ़ लेना(8) या कुछ अपनी मनघड़त और वो निरे गुमान (भ्रम)  में है.


*तफ़सीर*

     (7) किताब से तौरात मुराद है.

     (8) अमानी का अर्थ है ज़बानी पढ़ लेना. यह उमनिया का बहुवचन है. हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि आयत के मानी ये हैं कि किताब को नहीं जानते मगर सिर्फ़ ज़बानी पढ़ लेना, बिना समझे (ख़ाज़िन). कुछ मुफ़स्सिरों ने ये मानी भी बयान किये हैं कि “अमानी” से वो झूटी गढ़ी हुई बातें मुराद हैं जो यहूदियोँ ने अपने विद्वानों से सुनकर बिना जांच पड़ताल किये मान ली थीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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