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Thursday 13 September 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-9, आयत, ⑦⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब मुसलमानों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए (6) और जब आपस में अकेले हो तो कहें वह इल्म जो अल्लाह ने तुम पर खोला मुसलमानों से बयान किये देते हो कि उससे तुम्हारे रब के यहाँ तुम्हीं पर हुज्जत (तर्क) लाएं, क्या तुम्हें अक्ल़ नहीं.


*तफ़सीर*

     (6) यह आयत उन यहूदियों के बारे में नाज़िल हुई जो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने में थे. इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, यहूदी मुनाफ़िक़ जब सहाबए किराम से मिलते तो कहते कि जिसपर तुम ईमान लाए, उस पर हम भी ईमान लाए. तुम सच्चाई पर हो और तुम्हारे सरदार मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सच्चे हैं, उनका क़ौल सच्चा है. उनकी तारीफ़ और गुणगान अपनी किताब तौरात में पाते हैं. इन लोगों पर यहूद के सरदार मलामत करते थे. “व इज़ा ख़ला बअदुहुम”(और जब आपस में अकेले हों) में इसका बयान है. (ख़ाज़िन). इससे मालूम हुआ कि सच्चाई छुपाना और उनके कमालात का इन्कार करना यहूदियोँ का तरीक़ा है. आजकल के बहुत से गुमराहों की यही आदत है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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