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Thursday 4 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-12, आयत, ①ⓞ①*



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब उनके पास तशरीफ़ लाया अल्लाह के यहां से एक रसूल (6)   उनकी किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता (7) तो किताब वालों से एक गिरोह (दल) ने अल्लाह की किताब अपने पीठ पीछे फेंक दी (8) जैसे कि वो कुछ इल्म ही नहीं रखते (कुछ जानते ही नहीं) (9)


*तफ़सीर*

     (6) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

     (7) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तौरात और ज़ुबूर वग़ैरह की पुष्टि फ़रमाते थे और ख़ुद इन किताबों में भी हुज़ूर के तशरीफ़ लाने की ख़ुशख़बरी और आपके गुणों का बयान था. इसलिये हुज़ूर का तशरीफ़ लाना और आपका मुबारक अस्तित्व ही इन किताबों की पुष्टि है. तो होना यह चाहिये था कि हुज़ूर के आगमन पर एहले किताब का ईमान अपनी किताबों के साथ और ज़्यादा पक्का होता, मगर इसके विपरीत उन्होंने अपनी किताबों के साथ भी कुफ़्र किया. सदी का कथन है कि जब हुज़ूर तशरीफ़ लाए तो यहूदियों ने तौरात से मुक़ाबला करके तौरात और क़ुरआन को एकसा पाया तो तौरात को भी छोड़ दिया.

     (8) यानी उस किताब की तरफ़ ध्यान नहीं दिया. सुफ़ियान बिन ऐनिया का कहना है कि यहूदियों ने तौरात को क़ीमती रेशमी कपड़ों में सोने चांदी से मढ़कर रख लिया और उसके आदेशों को न माना.

     (9) इन आयतों से मालूम होता है कि यहूदियों के चार सम्प्रदाय थे. एक तौरात पर ईमान लाया और उसने उसके अहकाम भी अदा किये. ये मूमिनीने एहले किताब हैं. इनकी तादाद थोड़ी है. और “अक्सरोहुम” (उनमें बहुतेरों को) से उस दूसरे समुदाय का पता चलता है जिसने खुल्लम खुल्ला तौरात के एहद तोड़े, उसकी सीमाओं का उल्लंघन किया, सरकशी का रास्ता अपनाया, “नबज़हू फ़रीक़ुम मिन्हुम” (उनमें एक पक्ष उसे फेंक देता है) में उनका ज़िक़्र है. तीसरा सम्प्रदाय वह जिसने एहद तोड़ने का एलान तो न किया लेकिन अपनी जिहालत से एहद तोड़ते रहे. उनका बयान “बल अकसरोहुम ला यूमिनून” (बल्कि उनमें बहुतेरों को ईमान नहीं) में है. चौथे सम्प्रदाय ने ज़ाहिर में तो एहद माने और छुपवाँ विद्रोह और दुश्मनी से विरोध करते रहे. यह बनावटी तौर से जाहिल बनते थे. “कअन्नहुम ला यअलमून” (मानो वो कुछ इल्म ही नहीं रखते) में उनका चर्चा है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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