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Tuesday 23 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ यअक़ूब की सन्तान, याद करो मेरा एहसान जो मैं ने तुमपर किया और वह जो मैंने उस ज़माने के सब लोगों पर तुम्हें बड़ाई दी.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②③*

     और डरो उस दिन से कि कोई जान दूसरे का बदला न होगी और न उसको कुछ लेकर छोड़े और न क़ाफ़िर को कोई सिफ़ारिश नफ़ा दे (1) और न उनकी मदद हो.


*तफ़सीर*

     (1) इसमें यहूदियों का रद है जो कहते थे हमारे बाप दादा बुजु़र्ग गुज़रे है, हमें शफ़ाअत (सिफ़ारिश) करने छु़ड़वा लेंगे. उन्हें मायूस किया जाता है कि शफ़ाअत काफ़िर के लिये नहीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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